प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार
आत्मा से तन तक
जन्मों के बन्धन तक
ऐसी है ये डोर
जिसका न कोई छोर।
पर्वत सा धीर
सागर सा गम्भीर
पुष्प सा कोमल
झरने सा निर्मल
कहाँ जोड़ दे जाकर तार
है कल्पना के पार।
प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार।
एक शाम सा उदास
कभी भोर सा उल्लास
प्रतिक्षण है प्यास
दूर तक न कोई आस
शीतल मंद बयार
जीवन का आधार
प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार
bahut sundar bhavabhivyakti didi
जवाब देंहटाएंWah bahut khub
जवाब देंहटाएंWaaah se upar shbd naa mile.. Khoobsurat varnan.. Boht khoob
जवाब देंहटाएंइस कविता से प्यार धमनियों में स्पंदित हो उठा है और ह्रदय में प्रीत के सावनी हिंडोले प्रारम्भ हो चुके है। मन को छू लेनेवाली कविता।
जवाब देंहटाएंइस कविता से प्यार धमनियों में स्पंदित हो उठा है और ह्रदय में प्रीत के सावनी हिंडोले प्रारम्भ हो चुके है। मन को छू लेनेवाली कविता।
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