रविवार, 10 जुलाई 2016

मेरा स्कूटर,,,,

                            (चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)
  एक स्कूटर सी है जिन्दगी मेरी।सारा दिन सड़कों पर दौड़ती ,,,शाम को गैराज मे सुस्ताती ,,और अगली सुबह 3-4 'किक' के साथ स्टार्ट लेती हुई फर्राटे से सड़के नापती हुई चल पड़ती है।
     बड़ी नीरस सी प्रतीत हो रही है ना आपको लेख की शुरूवात?????सोचते होंगें,क्या सब लिखने लगी मै,,,स्कूटर,,सड़क,गैराज,, हा,हा,हा,हा,,,,,। मेरी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी है,,,,कुछ बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अग्रसर सोच है, एक तपस्या है, भाग- दौड़,,,और एक लंबा समयान्तराल है,,। इन सभी दैनिक आपाधापी से गुज़रते हुए, प्रतिदिन कुछ नूतन अनुभव होते हैं। वही एक जैसे रास्ते,वही चित-परिचित गन्तव्य,वही समयसारिणी,,,परन्तु नित नए अनुभव ।
    सड़कों के 'ट्रैफिक-जाम' से कुशलतापूर्वक निकलती हुई मेरी स्कूटर कभी स्वयं के 'चालन-कौशल' पर इठलाती है,,तो कभी समय,गति और सही निर्णय ना ले पाने के अभाव मे हुई त्रुटि पर मुँह छिपाती है। उन्ही जाने-पहचाने उबड़-खाबड़ रास्तों पर कभी सहजता से आहिस्ता से निकल जाती है, तो कभी उन्ही पर ज़ोर से उछलती हुई अनियन्त्रित हो जाती है।
    सड़के कभी खाली मिल जाए हुजूर तो फिर क्या कहने!!!!!! ,,,मक्खन सी फिसलती है,,,,पहियों और ब्रेक का तालमेल एकदम दुरूस्त,,,रफ्तार के साथ गुनगुनाती है,,,"जिन्दगी एक सफर है सुहाना,,यहाँ कल क्या हो ,किसने जाना",,,, मै और मेरी स्कूटर दुनिया से बेगानी ,एकदम मस्तानी चाल मे दनदनाती हुई,,,,बस पंख ही नही लगते,,,वरना नौबत उड़ने तक की आ जाती है,,,।
      एक बड़ी रोचक और मज़ेदार घटना अक्सर होती है-जब सामने या बगल से गुज़रने वाला वाहनचालक 'गलत टर्न' या 'ओवरटेक' लेने की कोशिश करता है, उस स्थिति मे उसकी अभद्रता और 'ट्रैफिक-नियमो' की उलाहना पर तेज़-तर्रार दृष्टि से कुठाराघात करते हुए बड़ी आत्मसंतुष्टि मिलती है,,,यदि किसी दिन मै ऐसी किसी उलाहनापूर्ण स्थिति का परिचय देती हूँ, तो परिस्थिति से ऐसे 'कन्नी काटती' हुए निकल जाती हूँ, मानो कुछ हुआ ही नही,,चेहरे पर यह भाव दिखाना-" ठीक है यार हो जाता है,,!" 😃
    स्कूटर चालन का सबसे सुखद और आनंदमयी दिन वह होता है,जब बारिश के आसार ना होते हुए भी अकस्मात वृष्टी पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ अवतरित हो जाती है आहहह ,,,,! गीली सड़कों पर मेरी स्कूटर के सामने पूरी लयबद्धता के साथ नाचती हुई बारिश की बूँदें,,,,हवा के तेज़ झोंके इन बूँदों को बिखेरने का पूर्ण प्रयास करती हैं, पर कहाँ,,,,!! अभ्यास इतना पक्का है,पल में,ताल पकड़ वे फिर से छम,,,छम,,,छम कर नाच उठती हैं,,,और इस छमछम के बीच लहराती हुई निकलती हूँ मै,,स्वयं को किसी सिनेमा की कुशल नायिका सा अनुभव करती हुई।
       जानबूझ कर पानी से भरे गड्ढों और सड़कों पर स्कूटर चलाना, वो 'छपाक्' की आवाज़, वो पानी को चीरते हुए पहियों का गुज़रना एक मस्ती और आनंदमयी तरंग उत्पन्न करता है।
    ये महज़ एक स्कूटरचालन नही है,,,' ट्रैफिक जाम' मे बुद्धि, विवेक और धैर्य का परिचय देना जीवन के कठिन क्षणों मे आचार व्यवहार को संतुलित रखना सिखाता है। खाली सड़कों और बारिश मे गुनगुनाते हुए सरपट दौड़ना, जीवन के उन निजी क्षणों को पूर्णता से जीने का द्धोतक है, दूसरों की त्रुटियों पर उन्हे घूरना और स्वयं की गलती पर 'कन्नी काटना' एक बड़ा स्वाभाविक  और सामान्य मनोभाव है।
   मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग,एक निष्प्राण, निर्जीव, धातुओं से निर्मित यह 'वाहन'  मेरे मन-मस्तिष्क मे उद्वेलित होते विचारों, असफलताओं,उपलब्धियों, का साक्षी है,,मेरे हर्षोउल्लास,मेरी पीड़ा और एहसासों का साथी है।
  अगर मै कहूँ मेरा स्कूटर मेरे व्यक्तित्व के विकास को एक रफ्तार देता है,,,,तो गलत ना होगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस लेख को पढने के बाद दो नज़रिया निर्मित होता है। एक नानारिया रोजमर्रा की ज़िन्दगी का है जिसमें लेखिका का स्कूटर दैनिक जीवन में अपनी उपयोगिता को प्रमाणित करता है और लेखिका अपने सुन्दर शब्दावली और स्पष्ट अभिव्यक्ति से इसे रोचक और आकर्षक बना देती है।

    दूसरा नज़रिया दार्शनिक भाव निर्मित करता है जिसमें स्कूटर मानव आत्मा के रूप में जीवन को संचालित करती है तथा मानव इसस्से प्रभावित हो अपना दैनिक कार्य करता है। स्कूटर, बारिश,बुंदेउं, तीन चार किक में स्कूटर का स्टार्ट होना आदि अनेकों शब्द हैं जो जीवन के विभिन्न पक्षों को दर्शाते हैं।

    लेखिका लिली मित्रा का यह लेख दर्शाता है कि यदि भाषा पर नियंत्रण हो तो अभिव्यक्तियाँ अक्सर खूबसूरत हो जाती हैं। सुन्दर और विचारोत्तेजक लेख के लिए लेखिका को बधाई।

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