गुरुवार, 30 जून 2016

एक कौतूहलपूर्ण जंगल यात्रा,,,,,,

 
  कभी कुछ नही सोचता मन,,,तो कभी एक छोटी चंचल गौरैया सा फुदकता रहता है । कभी पहाड़ों सा स्थिर, गम्भीर,अचल,शांत, तो कभी झरने सा कलकल करता बहता रहता है। बड़ा रहस्यमयी, बड़ा रोचक, विस्मयपूर्ण तो कभी सहज,सरल,शांत,,,,,,,।
   मन के जंगलों में घूमने निकली थी आज, 'कौतूहल की जीप' पर होकर सवार,,पथरीले,उबड़-खाबड़, धूप-छाँव से प्रश्नसूचक मार्गों पर दौड़ती मेरी 'कौतूहल की जीप' जैसे पग-पग पर नयें भेद खोल रही थी।
  रास्ते के दोनो तरफ 'महत्वाकांक्षाओं' के लम्बे ऊँचे वृक्ष दिखे,,,, कुछ तो जीवन से जुड़ी अनगिनत आशाओं, अभिलाषाओं और इच्छाओं के वृक्ष भी थे,,,सभी के अपने अलग आकार-प्रकार थे। यत्र-तत्र उगी हुई घास और झाड़ियों, नव पल्लवित इच्छारूपी पादपों ने मन की ज़मीन को जंगल का रूप दे दिया था,,,ये इतने सघन कि कभी-कभी जीवन के निश्चित लक्ष्य के मार्ग भी गुम होते प्रतीत हुए,,,तो दूसरी तरफ उच्च महत्वाकांक्षाओं के वृक्षों ने स्वछंद एवम् आनंदमयी जीवन के आकाश को आच्छादित कर रखा था।
    इन आशाओं और महत्वाकांक्षाओं के घने जंगलों से गुजरती मेरी 'कौतूहल की जीप' खुली पथरीली घाटी पर आ पहुँची,,,,परिस्थितियों की गरमी से 'अभिरुचियों की नदी' प्रायः सूख चुकी थी,,,अवशेष स्वरूप पत्थर या कहीं-कहीं इन्ही पत्थरों पर मध्यम स्वर मे कोलाहल करती छोटी-छोटी जलधाराँए अपनी मस्तानी चाल से आँखों के सामने से गुजर रही थी। मेरी जीप के टायर इन से मिलकर 'छपाककककककक्' ध्वनि के साथ अपना उल्लास व्यक्त करते हुए निकलते गए।
  द्वेष,ईष्या,अंहकार,क्रोध, क्षोभ,तृष्णा, भय,भेद,ग्लानि,हास्य,क्रन्दन,उल्लास जैसे मनोभाव रूपी कई वन्य जीवों को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर छलांगे मारते पाया।
    प्रेम के सूरज की किरणों को घनी वृक्षों की छाँव के बीच झाँकता पाया। अनुभूतियों की निर्मल शीतल बयार का सुखद स्पर्श इस यात्रा को और भी रोमांचक बना रहा था।
   विस्मित थी मै,,,इन जंगलों मे न जाने कितने रहस्य छिपे हैं??? शायद एक यात्रा मे इनका उदघाट्य असम्भव था।
उस पर मेरी जीप के कौतूहल का शोर,,,,,इंजन की आवाज ने कुछ ' गूढ, शांत, शर्मिले' भावों को मेरे पास तक फटकने न दिया। मैने कई बार सोचा इस कौतूहल के शोर को कम कर किसी वृक्ष के नीचे चुपचाप बैठ जाऊँ,,,, अपनी श्वास और ह्दय स्पंदन की ध्वनि तक को इन 'गूढ़, शांत, शर्मिले' भावों रूपी पक्षियों एंव वन्य जीवों तक न पहुँचने दूँ,,,,,इन भावों को जानू,,,समझू,,,,आत्मसात करूँ ,,,,,पर यह सम्भव ना हो सका,,,,इसके लिए ऐसी कई यात्राएँ करनी होंगी,,,,।
     भविष्य मे ऐसी रहस्यमयी, विस्मयकारी, रोमांचक जंगलों  की यात्राओं की योजना बनाली है,,,,,देखती हूँ और कितने अनछुए तथ्यों और भेदों से रुबरू हो पाती हूँ ।

   

4 टिप्‍पणियां:

  1. जंगलों में से गुजरिए...उन्हें देखिये...और फिर आप भीतर के जंगलों को खुद से दूर हटकर...साक्षी होकर भी देख सकेंगी......भीतर के जंगल, नदी, काई, पहाड़, उग आई कंटीली झाड़ियाँ और सुकोमल फूलों से एहसास...सब कुछ

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  2. Kyaa khoob boya aapne mn ki swachndadta ka beej jungle K udyaan me.. Yatra prarambh hui to ankurit hua paudha.. Khtm hote hote vibhinn komal karkash ehsaaso se pripurn paudhe ne vriksh ka aakar liya... Ab iski chhaya me aaram krne Ka mn ho ra hai Lily ji... Dhnyawaad aapka is yatra pe Le jane k liye

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  3. विस्मित हूँ आपके लेखन कौशल से। जंगल को मानवीय मनोभाव और कल्पनाओं से इस तरह जोड़ा है जैसे कुशल कारीगर आभूषण में नागों को बिठाता है। मन के विभिन्न पक्षों को गहराई से तलाशता यह लेख केवल एक पठन से पूर्णतया चित्रित नहीं होता है जब तक दोबारा गहनता में डूब शब्दों संग जिया न जाए। पूर्णतया परिष्कृत और परितृप्त करनेवाले लेख के लिए बधाई।

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  4. विस्मित हूँ आपके लेखन कौशल से। जंगल को मानवीय मनोभाव और कल्पनाओं से इस तरह जोड़ा है जैसे कुशल कारीगर आभूषण में नागों को बिठाता है। मन के विभिन्न पक्षों को गहराई से तलाशता यह लेख केवल एक पठन से पूर्णतया चित्रित नहीं होता है जब तक दोबारा गहनता में डूब शब्दों संग जिया न जाए। पूर्णतया परिष्कृत और परितृप्त करनेवाले लेख के लिए बधाई।

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