मंगलवार, 14 जून 2016

अन्तरद्वंद का फुटबाॅल मैच

                                      (चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)

  रोज़मर्रा की भाग दौड़ से जब थोड़ा सुकून पाया तो खुद को एक 'अन्तरद्वंद' से घिरा पाया। ऐसा लगा मन के दो पक्षों के बीच फुटबाॅल मैच छिड़ा हो,,,,फुटबाॅल की भाँति द्वंद कई पक्षों के पैरों की ठोकरों को झेलता हुआ इधर-उधर लुढकता पाया,,,कभी हवा मे उछलता हुआ तो कभी निष्कर्ष रूपी 'गोलकोस्ट' के काफी करीब,,,कभी सीमा छू कर बाहर की ओर एकदम विपरीत 'पाले' मे पहुँचता हुआ पाया।
      भावनाओ का परस्पर द्वंद वास्तविक जगत के प्रामाणिक मानदंडों के साथ,,,,कुछ पूर्व अनुभवों के साथ। जिस पल मन की कोमल भावनाएँ एक ज्वारभाटे की तरह उत्तेजित हो जाती हैं,,,,सभी प्रामाणिक मानदंडों और तथ्यों को अपने प्रबल उन्मादी वेग मे पता नही कहाँ बहा ले जाती है। उचित-अनुचित,,, अच्छा-बुरा कुछ समझ नही आता,,ह्दय एक ही गुहार लगाता है,,, सोचो मत बह चलो,,इसी 'बहाव' में असीम आनन्द छुपा है।
      एक' श्वेत अंधकार 'सा 'अन्तरद्वंद' ,,,अस्पष्ट सा,,,भय, भ्रम और अनिश्चितता का 'श्वेत अंधकार' ,,,,किसी निर्णय पर पहुँच पाना आसान नही,,,फुटबाॅल की तरह इधर-उधर लुडकते रहना।
   अन्तरभावों का जब प्रामाणिक तथ्यों के साथ टकराव होता है,,,,तब भावनाएँ वर्तमान क्षण को जी लेने की कहती हैं,,, तो द्वतीय पक्ष कहता है- भावनाओ को महत्व दिया तो भविष्य बिखर जाएगा,,,,तृतीय पक्ष आवाज़ देता है,,,, आजि छोडिए कल किसने देखा,,,?? विषम हालात् किसी एक को चुनने की विवषता,और निष्ठुर काल गति को रोक पाना अस्मभव,,,!!
     ये अन्तरद्वंद कभी समाप्त नही होते, प्रतिदिन एक नए विषय के साथ हमारे सम्मुख मुहँ बाए खड़े हो जाते हैं। आने वाला समय हर समस्या का निदान साथ लाता है, परन्तु इस मन का क्या????? फुरसत के दो पल साथ क्या बिताने बैठी,,ये तो मेरे साथ 'अन्तरद्वंद का फुटबाॅल मैच' खेलने लगा
     मानव-मन की एक बड़ी स्वाभाविक प्रक्रिया,,, थोड़ी देर के इस मैच मे,,उत्तेजना है,,छटपटाहट है,,अनिश्चितता है,,अस्पष्टता है,,उथल-पुथल है,,,,, परन्तु कब एक "परफेक्ट किक" के साथ फुटबाॅल 'गोलकोस्ट' मे पहुँच जाती है, और हम खुद को द्वंद से बाहर पाते हैं।
   अकस्मात् मन कह उठता है,,,जो होगा देखा जाएगा,,,,,,,परन्तु कुछ पलों का भावनाओं का यह मंथन बहुत से तथ्य सामने लाता है, एक नई सोच को दिशा देता है,,,, तब मानव मन के अन्तरद्वंद एक वरदान प्रतीत होते हैं ।
    

6 टिप्‍पणियां:

  1. Boht hi steek shbdo ka prayog kr.. Mn me uchalte bhaavo ko football match k sath joda... Lily ji..
    Mn me vicharo ka ataah sagar liye..
    Ball ko goal coast tk Le gai aap boht khoobsurti se

    जवाब देंहटाएं
  2. Neha ji mera man to aapki tippadi padker uchhalne laga....bahut pyaara likha aapne...😊

    जवाब देंहटाएं
  3. अंतर्द्वंद्व या आत्म क्रीड़ा ? मन हणेशा मनभावन की तरफ दौड़ता है और अक्सर ऐसा होता है कि मन दोराहे पर ठगा सा खड़ा दोनों राहों पर चलने का प्रयास करता है। एक कुशल जिमनास्ट की तरह या चतुर फ़ुटबाल खिलाड़ी की तरह। आत्मद्वंद्व का निदान तो देर सबेर मिल जाता है किन्तु आत्म क्रीड़ा तो बस खेलते रहती है। ज़िन्दगी कई बार ऐसे पलों से गुजरती है और एक नयी ताजगी दे जाती है। यदि यह पल लंबा चलता रहे तो व्यक्ति रचनाकार बन जाता है। विश्व की महानतम उपलब्धियां अंतर क्रीड़ा की ही दें हैं।
    उत्कृष्ट विचार, शब्दों की मोतियों में करीने से पिरोये हुए। आप की लरखं क्षमता अद्भुद है। यह एक विचारोत्तेजक प्रस्तुति है। प्रशंसनीय है, सराहनीय है। पढकर अंतर्मन नृत्य करने लगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपकी टिप्पणी सदैव प्रेरणा का स्रोत एंव उत्साहवर्द्धक होती हैं,मेरे लेखों को विस्तार प्रदान करती हैं।

      हटाएं
    2. आपकी टिप्पणी सदैव प्रेरणा का स्रोत एंव उत्साहवर्द्धक होती हैं,मेरे लेखों को विस्तार प्रदान करती हैं।

      हटाएं
  4. अंतर्द्वंद्व या आत्म क्रीड़ा ? मन हणेशा मनभावन की तरफ दौड़ता है और अक्सर ऐसा होता है कि मन दोराहे पर ठगा सा खड़ा दोनों राहों पर चलने का प्रयास करता है। एक कुशल जिमनास्ट की तरह या चतुर फ़ुटबाल खिलाड़ी की तरह। आत्मद्वंद्व का निदान तो देर सबेर मिल जाता है किन्तु आत्म क्रीड़ा तो बस खेलते रहती है। ज़िन्दगी कई बार ऐसे पलों से गुजरती है और एक नयी ताजगी दे जाती है। यदि यह पल लंबा चलता रहे तो व्यक्ति रचनाकार बन जाता है। विश्व की महानतम उपलब्धियां अंतर क्रीड़ा की ही दें हैं।
    उत्कृष्ट विचार, शब्दों की मोतियों में करीने से पिरोये हुए। आप की लरखं क्षमता अद्भुद है। यह एक विचारोत्तेजक प्रस्तुति है। प्रशंसनीय है, सराहनीय है। पढकर अंतर्मन नृत्य करने लगा।

    जवाब देंहटाएं