(चित्र इन्टरनेट से)
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ,
अपने खोए वजूद को छूना चाहती हूँ।
बन्द पिंजरे मे पंख फड़फड़ाती रही हूँ,
खुद के आसमान मे उड़ना चाहती हूँ।
कई दायरों में बाँधकर रख दिए,
ख्वाहिशों के दरियाओं को।
रवाज़ों को तोड़ अब बहना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरी ज़िन्दगी के फैसले मोहताज से होगए,
उम्र के हर पड़ाव मे किसी और के हो गए।
बेबसी के ये दौर अब तोड़ना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
जज़्बातों को रौंदकर महल नए बनाती गई,
हर इक दीवार को मुस्कुराहटों से सजाती गई।
कुछ तस्वीरें अपनी हसरतों की लगाना चाहती हूँ।
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरे दर्द की पीर खुद में सुबकती रही,
ऐ ज़िन्दगी फिर भी मै खिलखिला के हंसती रही।
दबे से ज़ख्मों पर खुद मलहम लगाना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ,
अपने खोए वजूद को छूना चाहती हूँ।
बन्द पिंजरे मे पंख फड़फड़ाती रही हूँ,
खुद के आसमान मे उड़ना चाहती हूँ।
कई दायरों में बाँधकर रख दिए,
ख्वाहिशों के दरियाओं को।
रवाज़ों को तोड़ अब बहना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरी ज़िन्दगी के फैसले मोहताज से होगए,
उम्र के हर पड़ाव मे किसी और के हो गए।
बेबसी के ये दौर अब तोड़ना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
जज़्बातों को रौंदकर महल नए बनाती गई,
हर इक दीवार को मुस्कुराहटों से सजाती गई।
कुछ तस्वीरें अपनी हसरतों की लगाना चाहती हूँ।
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरे दर्द की पीर खुद में सुबकती रही,
ऐ ज़िन्दगी फिर भी मै खिलखिला के हंसती रही।
दबे से ज़ख्मों पर खुद मलहम लगाना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
Boht khoob lily di...
जवाब देंहटाएंShayad hr kisi k dil me yhi drd hai..kahin na kahin aapki ye lekhni zindagi k har pehlu ko choo gai..
Mn me utarne wali atiuttam abhivyakti
जब हम एक ही माटी के बने हैं तो भावनाएँ भी एक सी होती हैं नेहा�� बहुत सारा स्नेह ��
हटाएंBoht khoob lily di...
जवाब देंहटाएंShayad hr kisi k dil me yhi drd hai..kahin na kahin aapki ye lekhni zindagi k har pehlu ko choo gai..
Mn me utarne wali atiuttam abhivyakti
आपकी अब तक की सबसे उम्दा अभिव्यक्ति। सरल शब्द, मगर जज़्बात जबर्दस्त।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रश्मि दिल गदगद हो उठा :)
हटाएंआपकी अब तक की सबसे उम्दा अभिव्यक्ति। सरल शब्द, मगर जज़्बात जबर्दस्त।
जवाब देंहटाएंनारी को यह कविता सुसज्जित करना जानती है
जवाब देंहटाएंविचारों को लगा पंख व्यवस्थित रहना जानती है
कई सत्य कई भ्रामक दीवारों से सजाया गया इन्हें
आदि शक्ति हैं ठान लें तो रुकना कहाँ जानती है।
कविता को मलहम लगाती आपकी टिप्पणी धन्यवाद धीरेन्द्र जी
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