शुक्रवार, 30 जून 2017

पहली बारिश,,

                        (चित्र इन्टरनेट से)


बादलों ने घेरा था
मेरे दिल का आसमान,
हल्की सी बूंदा-बांदीं
ने छू लिए तपते अरमान।
आधी सूखी आधी गीली
थी अभी मन की बस्ती,
तभी बादलों की गड़गड़ाहट
ने जारी कर दिया फरमान।

हवाएं थी तेज़,बूँदों ने चूम ली
थी एहसासों की ज़मीन।
एक मीठी सी सिहरन
मुझे आगोश मे ले चली,
प्यार की पहली बारिश
मुझे भिंगोने चली।
चेहरे को चूम अधरों
पर रूकी,एक इन्द्रधनुष
सा खींच वो छूमंतर हो चली।

अंतरमन है तर पहली
 बरसात से,धुली-धुली सी प्रीत
 उज्जवल एहसास से।
अनुभुतियों की शीतलता
अब बहकाने लगी,
प्रीत की पहली बारिश
अधरों पर मुस्कुराने लगी।


बुधवार, 28 जून 2017

मेरी महाभारत,

                        (चित्र इन्टरनेट से)

रणभूमि स्वयं सजाई है,
खुद से ही हाथा-पाई है।
रच डाले कितने चक्रव्यूह,
अभिमन्यु सी स्थिति आई है।

खुद के ही गर्भ से जनितशत्रु,
मुझ पर ही करते तीक्ष्ण प्रहार।
कट-कट कर गिरते अंग-प्रत्यंग,
अन्तर मन लगभग धराशायी है।

मौन भरे हुंकार,आ दुष्ट समक्ष,
क्यों करता छुप छुपकर प्रहार?
कितनो को मार गिराया है,
कितनों की बारी आई है।

अश्रु नही अब रक्त बहे,
कटु सत्यों के घाव सहे।
कोई तो निष्कर्ष मिले अब, 
सांझ भी ढलने को आई है।

संहार हो रहा निर्ममता से,
जो भाव सुकोमल,नर्म सरीखे थे।
पाषण खड़े अब उन जगहों पर,
अभिव्यक्ति बड़ी दुखदाई है।

अभिमन्यु सा तोड़ चक्रव्यूह,
दोनो हस्तों से तलवार उठाई है।
खुद की रचना को भेदूँ कैसे ,
विकट समस्या मुँह बाई है।

अट्टाहासों से गूँज रहा सब ,
विकराल बड़ा भयदायी है।
इस महाभारत से निकलूँ कैसे,
यह ग्रन्थ मुझ से ही जाई है।

सोमवार, 19 जून 2017

महसूस करना कितना सुखद होता है,,,!

           (मेरी खिड़की से झांकती बारिश के बाद की संतुष्टि)

बारिश से धुली-धुली सुबह, ठंडी हवाओं के झोंकें,चाय का कप,मन मे उठते गिरते कितने ख़्याल,,,,और क्या चाहिए एक सुबह को सुहानी होने के लिए।
हाथों मे नोटपैड और तेज़ी से टाइप करती अंगुलियां,,मन मे उठते हर ख़्याल को लपक कर टाइप करती हुईं,,एक पल की भी देरी हुई तो ख़्यालों की चिड़िया एक डाल से दूसरी पर फुदक जाएगी।
   कोई विषय नही है आज,,कोई रूपरेखा नही निर्धारित,,,आज सब आवारा है,,मेरे मन की तरह,,। मौसम के मिजाज़ से तबीयत तर है या कोई और कारण हो भी तो मुझे खुद नही पता,,। कभी-कभी बिन बात के ही सब कुछ रोमानी लगता है,,जैसे जगजीत सिंह जी की प्रेम-गज़ल सुनकर ,, मन तड़प उठता है,, पल मे लगने लगता है हर पंक्ति मेरे लिए है,,भले ही 'प्रेम' का ' प' भी जीवन मे प्रवेश ना पाया हो।
     एक ठंडी हवा का नर्म झोंका टकराया मेरे गालों से,,,,, उँगलियां जगजीत सिंह की गज़ल का विवरण छोड़,,इस झोंके के एहसास पर लपक पड़ी,,कहीं ओझल ना हो जाए। महसूस करना भी कितना सुखद होता है,,,!!! दो विपरीत परिस्थितियों मे रहना और उसको महसूस करना,,,कमरे मे थोड़ी गरमी है,,,और बाहर से आई ठंडी हवा का झोंका जो गालों से टकराया,,, सुखद लगा,,महसूस हुआ,,और लिख गया।
     बारिश फिर से होने लगी,,आज कुदरत रिझाने पर अमादा है,,।जैसे कोई सुन्दर कामिनी,,आंचल मे छुपाए हो दामिनी,हवा के झोंके से जो लहरा जाए आंचल फट पड़े बादल गरज उठे मौसम जामुनी,,,,,। बारिश क्यों रिझाती है??? बिजली के तारों पर बूँदों की वो लड़ियां,,,,!!!! कैसी पंक्तिबद्ध,,,जैसे मुक्ता की माला,,उस पर से सावन जैसे मधुशाला मे हाला,,,!
     गाती भी हैं बूँदें और थिरकती भी हैं,, सुर मे आरोह भी है और अवरोह भी,,लयबद्धता है ,,,,महसूस करना कितना सुखद होता है,,,,,,,! मेरे साथ कर के देखिए। रफ्तार पकड़ती हैं एक साथ कितनी कितनी जलधार ,,सीधी बादलों के अन्तर से निकलती हुई,,तेज़ कभी मद्धम्,,,। क्या बादल रोते हैं,,,? कितने जलकुन्ड और समन्दरों का जल धूप की तपिश मे वाष्पित होकर मेघ बने होंगें,,,!!! कितना लम्बा सफर तय कर ये मेघ पर्वतों से टकराए होंगें,, फिर से मेरे शहर तक आए होंगें,,,,,!! महसूस करना कितना सुखद,,,,,,,,,,,। रोते हैं क्या ,,,? पर क्यों रोते हैं? ये मिलन की सुखद अनुभूति का क्रन्दन है क्या? जल बिन्दुओं का धरती से पुनः मिलन की सुखद अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है क्या,,,? पर शायद सभी जल बूँदें भाग्यशाली नहीं। कुछ परम विषाद में हाऊँ-हाऊँ कर के रोती हैं,,। तभी कभी-कभी मुझे तेज़ बारिश मे दर्द की अनुभूति होती है।
         भाग्यशाली नही होतीं???? ऐसा क्यों आया मन में,,?? लगता है मेरा प्रश्न इनके दिल को छू गया,,फिर से एक सौम्य झोंका मेरे चेहरे को छू गया,,। जैसे कह रहा हो,,, बोलो ना क्यों भाग्यशाली नही मैं,,? वो चाहती हैं मुझसे सुनना,,जैसे कुछ बातें हम स्वयं नही कहना चाहते ,पर यह भी चाहते हैं कि सब समझ जाएं,और उसे हमसे ही कहें। आज बूँदें मुझसे कहलवाना चाहती हैं। तो सुन ओ बारिश की बूँदों-" तुम रोती हो परम विषाद में हाऊँ-हाऊँ करके,, और तुम भी अपने आंसुओं को बारिश मे छुपाने की कोशिश करती हो,, थिरकते हुए एक लयबद्ध सुर मे धरती पर गिरती हो। अपने क्रन्दन स्वर को छुपाने के लिए। पर मुझे सुनाई देता है तुम्हारा रोना। तुम अपने भाग्य पर रोती हो,, ना जाने किस जलराशि का अंश हो और किस सूखी धरा पर बरस पड़ी हो,,नियति के नियम से बंधी हो। जहाँ से तुम्हारा उद्गम है वहाँ तुम्हारा मिलन नही। जिसका अंश हो उससे बिछड़ चुकी हो,,कहीं और बरस चुकी हो,,। जहाँ तुम्हारी आवश्यकता है तुमने खुद को समर्पित कर दिया है,,तुम कर्तव्य पथ पर हो। यही तुम्हारा कर्म है नियति लिखित।"
      देखो बंद हो गई बारिश उसके मन की अनकही लिख दी ना मैने,, आंसू रूक गए उसके। अंतर शान्त हो गया उसका। महसूस करना भी कितना सुखद ,,,,,,,!
   अब और नही बरसेगी शायद ,पंक्षियों की चहचहाहट शुरू हो गई है,,।हवाओं ने बिजली के तारों पर सजी पंक्तिबद्ध बूदों की लड़ियों को गिरा दिया है। हल्की हल्की सुबुकने की आवाज़े आ रही हैं रुक-रुक कर,,मकानों के छज्जों पर रुके हुए पानी की कुछ बूँदे टपक रही हैं ,अभी भी।
     विषय सोचा नही था,,आज सब आवारा था ,मतवाला था। बारिश तब नही थी जब लिखना शुरू किया, पर मेरे मन के साथ वह भी बरस पड़ी,,उसको आज अपने मन की मुझसे कहलवानी थी शायद। अब देखो फिर से बंद हो गई। संतुष्टी की महक है हवा के झोंकों मे,,,,,। महक,,,,,,भी आने लगी मुझे हा-हा-हा-हा,,,,,,! महसूस करना कितना सुखद होता हैं,,,,,, है ना! 😊

शुक्रवार, 9 जून 2017

हे राधा!,,,कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ,,,,

                        (चित्र इन्टरनेट से)

  राधा रूठ गई कन्हैया से,,कह डारी कितनी ही कड़वीं बतियां मनबसिया से। कहे राधा नयनन् मे भर के आंसुअन की धार, कहो कन्हैया का देखो तुम इन गोपियन मे,,अऊर हो जात हो निढाल? जिया मोर सुलग जाए सुन तुम्हरी रसिली बतियां,, ए कन्हैया! काहे तुम रस बरसाओ इन पर, मै कुढ़ कर नीम्बौरी बन जाऊँ,,सही ना जाए मोह से ऐसी बतियां,,,,,,, ऐसे संवाद राधा और कृष्ण मे अवश्य होते होंगें,,। कृष्ण के चितचोर नयन,,मोहक रूप ,उस पर बांसुरी से मन मोहनी तान छेड़ने का हुनर ने पूरे ब्रज की गोपियों को मोहपाश मे जकड़े हुए था।
     जब कल्पना जगत के फ्लैशबैक मे जाकर राधा-कृष्ण की अमरप्रेम कहानी के किस्से सुनती हूँ तो राधा के प्रति आदर से भी बढ़कर यदि कोई भाव हो ,तो मन मे आता है। कैसे एक स्त्री होते हुए वह अपने प्रेमी कृष्ण को अन्य गोपियों के साथ छेड़-छाड़ को सह पाती थीं? राधा आप शायद इसीलिए पूज्ययनीय हो। कृष्ण पर क्रोध करती होंगीं कुछ पल के लिए फिर मुहँ फुलाकर दूर भी चली जाती होंगीं।पर मन मे कृष्ण के प्रति अनन्त अनुराग,,अथाह प्रीत उनको बहुत देर तक क्रोध की अगन मे जलने नही देती होगी। अन्तरमन से संवाद कर राधा फिर से मुस्कुरा उठती होंगीं,, यह सोचकर की असंख्य गोपियों के साथ छेड़-छाड़,थोड़ी चुहलबाज़ी करने के बाद भी कृष्ण के एकान्त भावनात्मक पलों की संगीनी सिर्फ राधा ही हैं।
    अब कृष्ण भले ही भगवान हों परन्तु पृथ्वी पर मानव अवतार हैं, और 'पुरूष' हैं। पुरूष यानि संसार को चलाने वाला,,चट्टान सा सख़्त दिखने वाला,,अपने अहम् को अपना आभूषण मानने वाला,,अपने भुजबल से युद्धों पर विजय प्राप्त करने वाला। उसके शरीर के बाई तरफ भी एक धड़कता हुआ दिल होता है जिसमे रक्त का संचार सतत् प्रवाहशील इसलिए है ताकि वह जीवन की कठोरता को बिना टूटे सहन करता रहे। अपने कर्मक्षेत्र और अपने दायित्वों का निर्वाह कठोरता के साथ करता रहे। उसका 'पुरूषत्व' अंहकार से भरा होता है। वह लचीला नही होता। उस पर आघात् लगे तो वह तिलमिला उठता है। अपने पौरूष को बनाए रखने के लिए उसे नारी का साथ चहिए होता है। पुरूष भी भावुक होते हैं पर नारी की तरह अपनी भावनाओं का प्रदर्शन नही करते। हृदय की दुनिया को समेटे रखने के लिए सांसारिक कर्तव्यों को कुशलता से निभाते जाने के लिए उन्हे शक्ति एंव उर्जा की आवश्यकता पड़ती है। अब हंसी आ रही है मुझे लिखते हुए- कि नारियां पुरूष रूपी चूल्हे का 'ईर्धन' हैं,,,,जिसको जलाकर वे जीवन कर्तव्यों का भोजन पकाते हैं। एक ईर्धन समाप्त हुआ दूसरा डाला जाता है। दूसरा खत्म तीसरा,,,,,,,,,,,,पर एक लकड़ी बहुत मोटी वाली होती है जो अंत तक साथ देती है,शेष सहयोगिनियां होती हैं।
     मै अब मन ही मन  राधा से बोल पड़ी,,, हे राधा! कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ था। उनको अपने चूल्हे को जलाए रखने के लिए16100 रानियों+8पटरानियों को पत्नियों स्वरूप, एक राधा जैसी प्रेमिका, और मीरा जैसी साधिका की आवश्यकता पड़ी(हो सकता है और भी नाम हों,पर प्रसिद्धि इन दोनो को ही मिली)। कृष्ण का कर्मक्षेत्र भी गौर तलब है,,, स्वम् ही गीता मे बोला है-
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः
अभयुत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानम् सृजाम्यहम्।"
पूरी पृथ्वी को पाप से मुक्ति और धर्म संस्थापना उनका कर्म था। इतने बड़े जीवनअभियान के लिए कई हज़ार पत्नियां,प्रेमिका,साधिका का जीवन मे होना उनकी आवश्यकता थी,,,इसे विलासिता कहना अनुचित होगा। धर्म के विरूद्ध होगा।
     यह कृष्ण का चारित्रिक दोष कतई नही था।
    इसके विपरीत जब 'रामावतार' पर सोचने बैठती हूँ ,,तो पाती हूँ आजीवन एक स्त्रीव्रता बन कर बिचारे राम को क्या मिला,,,,? जीवनभर सीता के सानिध्य को तरसते रहे,,। एक पत्नी मिली उसको भी रावण हरण करके लेगया। युद्ध करके वापस लाए तो एक धोबी के कहने पर गर्भवती पत्नी को घर से बाहर भेजना पड़ा । अंत मे सीता मइयां ही धरती मे समा गईं। राम का जीवन विलाप बनकर ही रह गया। यही कारण है कि, आज भी कृष्ण की जीवन यापन शैली व्यवहारिक मानी जाती है,,जबकि राम की जीवन शैली एक 'आदर्श' मात्र है। मतलब कि- कृष्ण जैसी जीवन शैली अपनाई तो पूरा जीवन रसपूर्ण और जीवन के सभी कर्तव्य रचनात्मकता के साथ पूरे हो जाएगें। यदि राम जैसी जीवन शैली अपनाई तो भइय्या,,,, रोते रह जाओगे और आदर्श का प्रतीक बना दिए जाओगे।
       मैने जो सोचा जो वैचारिक मंथन किया शायद यही मंथन राधा भी करती होंगी,,, जब वह कृष्ण के छलिया रूप से क्रुद्ध हो जाती रही होंगीं। इस निष्कर्ष पर आकर मुस्कुरा उठती होंगीं,,, कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ,,कृष्ण का व्यवहार नियति निर्धारित। कृष्ण छलिया नही कृष्ण सच्चे पुरूष जिसे अपने विशाल जीवन लक्ष्य को पूरा करने के लिए ऊर्जा का एक विशाल भंडार चाहिए। इसके लिए उन्हे नारियों के विशाल सानिध्य की दरकार थी। हर एक की अलग विशिष्टता, अलग प्रकार की ऊर्जा देती है। परन्तु राधा,रूक्मणी,मीरा में विशिष्टताओं का बाहुल्य था इसलिए वह उनको अधिक प्रिय थीं। उनके साथ उनका नाम जुड़ गया।
      इसलिए हे राधा तुम रूठियो मत,,यदि कृष्णयुग फिर से आए,,। जो कतई रूठ भी जइयो तो खुद ही मान जइयों ,, अपने संवरियां से लिपट जइयों और कहिओ,, कन्हैयां! मोरे संइय्या जग घूमया थारे जैसा ना कोई!!!!
क्यों रूठ रही राधे तू कन्हैया से
मुरलीधारी वह बनवारी
कर्मक्षेत्र को जुझारी,,,
बात मोरी मान
हिया से लिपट
हे राधा! कृष्ण पर क्रोध व्यर्थ😃

बुधवार, 7 जून 2017

आज का विषय ,,,,'पुरूष'

                             (चित्र इन्टरनेट से)

    प्रतिदिन सोशल मिडिया पर नारी की फटी-चीथड़ी ,,आंखों मे आंसू और गोद मे बिलखते बच्चों की तस्वीरों,,और अत्यन्त दारूण पोस्टों को देखते देखते मै थक चुकी हूँ,,,ऐसा नही की मै समाज मे हो रहे नारी शोषण की पक्षधर हूँ। मै भी एक नारी हूँ ,,,और इस तरह कि नारी के प्रति हो रही सामाजिक विद्रुपताओं से मेरा हृदय छलनी नही होता,,। पर इस सबसे अधिक हृदय  विक्षिप्त तब होता है जब लोग मात्र प्रसिद्धि के लिए इन विषयों पर बड़ी नग्नता के साथ चर्चा करते दिखते हैं।
   सोशल मीडिया पर अपनी पोस्टों पर ढेरों लाइक्स की मंशा से खोज-खोजकर विचित्र लेख और तस्वीरें पोस्ट करते हैं । भाषा और विषय इतना शर्मसार कर देता है कि,,लगता है,,,हे ईश्वर हमे स्त्री क्यों बनाया??? अंतर मन रोष से विद्रोहित हो उठा है।
    सोचा क्यों ना आज पुरूषों को विषय बनाया जाए,,,लोगों मे बड़ी जिज्ञासा होती स्त्री रहस्यों को सुलझाने की,शोध करने की,,,आज मेरा मन कर रहा है मै पुरूषों के जीवन पर शोध करूँ उनके जीवन की व्यथाओं को जानूँ,,,कुछ प्रश्न हमेशा उठते हैं मेरे मन मे,,,


1# क्या पुरूषों का जन्म नारी जीवन पर शोध करने के लिए हुआ है? जब देखो जहाँ देखो चर्चा का एक ही विषय 'नारी' सड़कों पर,,सार्वजनिक स्थलों पर,ऑफिस, सोशल मीडिया ,,सब जगह,,ऐसा क्यों???

2# हम महिलाएं घर सम्भालती हैं पति सम्भालती हैं,,पुत्र सम्भालती हैं,,टीफिन ,खाना घर बाहर,,सब,,,उफ्फ जब सब हम ही कर लेती हैं तो आप पुरूष क्या करते हैं,,,???? आपकी भी तो कोई दिनचर्या होती होगी,,?? आप भी तो सारा दिन घर से बाहर ,,लू धूप एवं अन्य प्राकृतिक विपदाओं को सहन कर अपने परिवार के आर्थिक सहयोग मे लगे रहते हैं। इस पर कोई पोस्ट क्यों नही आती?

3# महिलाओं की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर( पीरियड्स से लेकर गर्भधारण और उसके पश्चात भी) को लेकर कई दर्दनाक पोस्टें आती हैं। पुरूष की इस तरह की बायोलाॅजिकल समस्याओं को लेकर कोई पोस्ट नही आती,,,क्या वे हाड़-मांस के बने नही होते,,हाॅरमोनल समस्याएं उनमे नही होती,,,इनको विषय क्यों नही बनाया जाता?

4# स्त्रियों के परिधानों को लेकर आए दिन चर्चा गवेषणाएं बुद्धिजीवी वर्ग या सामान्यजन करते रहते हैं।,,,,,,, ये पुरूष जो हाफ पैंट और बनियान या और भी अजीबो-गरीब अंगप्रदर्शित करते परिधान पहन कर घूमते रहते हैं ,,उनको क्यों नही मुद्दा बनाया जाता,,ऐसे अर्द्ध नग्न पुरूषों को देखकर नारी मन मे विकार उत्पन्न हो सकते हैं। क्यों नही पुरूषों को मशवरे दिए जाते,, कायदे के कपड़े पहनों,,।

5# खुले मे शौंच ना करें,, महिलाओं के लिए शौंचालय बनवाएं,,,, पर कोई इन पुरूषों के लिए 'मूत्रालय' बनवाने का कष्ट करेगा,,? यत्र-तत्र सर्वत्र मूत्रालय,,, !!!  मूत्रालय होते हुए भी खुले मे मूत्रदान ,,।इस को विषय क्यों नही बनाया जाता????

6# बलात्कार,,,, क्या केवल नारी का होता है,? ऑफिसों मे क्या केवल महिलाओं का दैहिक शोषण होता है,?? पुरूषों का भी होता है,,, फिर मात्र महिलाओं के साथ हुए बलात्कारों का पूरे क्रमबद्ध तरीके से विस्तृत वर्णन करती पोस्टें लिखी जाती हैं और प्रचारित की जाती हैं?? पुरूषों के साथ हुए बलात्कारों पर लिख कर क्यों नही प्रचारित किया जाता,,। इसे क्यों नही विषय बनाया जाता??

7# नाबालिक लड़कियों के साथ ही दुरव्यवहार नही होता साहब,,नाबालिक लड़कों को भी इस हैवानी अमानुषिक यतना का जहर पीना पड़ता है,, इसको विषय क्यों नही बनाया जा सकता,,?

8# बिस्तर पर केवल महिलाओं का पति द्वारा इच्छा के विरूद्ध शारीरिक शोषण नही होता,,, महिलाओं द्वारा भी अपने पतियों पर जबरदस्ती करने की वारदातें होती हैं,,उन्हे प्रकाश मे क्यों नही लाया जाता,,?

9# घरेलू हिंसा की शिकार क्या केवल महिला ही हैं,,?? जी नही बहुत से ऐसे पुरूष भी हैं,,जो घरेलू हिंसा का शिकार हैं,,और उनकी सुनवाई कहीं नही होती,,,यहाँ तक की न्यायालयों मे भी गुहार नही सुनी जाती,, क्योंकि न्यायव्यवस्था ने "नारी सशक्तिकरण" के अन्तर्गत कानून महिलाओं के पक्ष मे अधिक कर रखे हैं। ऐसी स्थिति मे चाह कर भी प्रताड़ित पुरूषों को न्याय नही मिल पाता। ऐसे तत्थों का उद्घाट्य बहुतायत मे क्यों नही?

     हो सकता है और भी कई ऐसे विषय हैं जिनसे मैं अनभिज्ञ हूँ। परन्तु जितने बिन्दु मैने ऊपर लिखे,,शायद यह भी कम नही हैं,, सोशल मीडिया पर विषय बनाकर चर्चा करने के लिए।
    अंत मे बस इतना ही निवेदन नारी हो या पुरूष दोनो ही ईश्वर की बनाई रचना हैं दोनो को 'मनुष्य' की श्रेणी मे रखिए। उनके मानवीय गुणों को समझिए ना की उनकी प्रदर्शिनी लगाइए। ईश्वर द्वारा रचित उनकी शारीरिक विभिन्नताओं का सम्मान कीजिए,,,उनको विषय मत बनाइए। यदि मै कुछ अनुचित और अवांछनीय कह गई तो क्षमा प्रार्थिनी हूँ। एक रोष था एक पीड़ा थी जो बह निकली। आशा है आप इन्हे समझने का प्रयास करेंगें।
धन्यवाद!!

गुरुवार, 1 जून 2017

ख़्याल भी कितने ख़्याली ,,,,

                    (आज चित्र मेरी सौजन्य से😃)

आज पहला दिन है गरमियों की छुट्टियों का,,, एक अजब सी बेफिक्री भी है ,,और गजब की फिक्र भी,,,,। बेफिक्री इस बात की घड़ी के आलर्म बजने से पहले ही आंख खोल,,, किचन मे घुसकर बच्चों के लिए दूध बनाकर देना,,स्कूल का टिफिन बनाकर रखना। उफ्फफफ् ये टिफिन मे क्या  बना कर देना है,,,!!! यदि इस मुद्दे पर सोचने बैठो तो विश्व की जटिल से जटिल समस्या भी फीकी पड़ जाए। कभी कभी तो समझ नही आता हम 'खाने' के लिए जन्मे हैं या 'खाना' हमारे लिए जन्मा है?????? 'टिफिन आइडियाज़'  पाने के लिए हम माँएं क्या नही करतीं???? दिन मे ना जाने अपनी कितनी सहेलियों से फोन पर,,व्हाट्सऐप पर,, इस गम्भीर समस्या पर चर्चा करते नही थकतीं,,,,,,। फिर भी रोज़ एक ही सवाल सुरसा राक्षसी के जैसे मुँह फाड़ता रहता है।
     देखिए मै कितनी अधिक प्रभावित और पीड़िता हूँ ,, 'टिफिन समस्या' पर बात क्या छेड़ी पैराग्राफ कितना लम्बा लिख गई,,, सुध ही न रही की मै लिख रही हूँ,, पल्लवी(मेरी सहेली) से फोन पर चर्चा नही कर रही !!!!अभी फिलहाल के लिए मैं 'टिफिन समस्या' की फाइल को छुपा लेती हूँ,,क्योंकि मुझे आभास हो रहा है कि मै जो लिखने के लिए बैठी हूँ,,उस विषय से खिसक गई हूँ (काश कि यहाँ मै फेसबुकी इमोजी भी चिपका पाती😜 ऐसे)। हाँ तो ये थी मेरी 'अजब की बेफिक्री',,,, । अब गजब की बेफिक्री ये है किं- बच्चे घर पर हैं और बार बार पूछ रहे हैं,,, माँ खाने मे क्या स्पेशल है,,,? कुछ अच्छा बनाओ,,,। अब लिजिए 'आसमान से गिरे और खजूर पर अटके',,, अब खजूर पर अटकी हूँ तो थोड़े खजूर खा ही लेती हूँ,,।आपको भी चाहिए तो अभी बता दीजिए,,कूद गई ऊपर से तो फिर ना बोलिएगा,,,,मेरे लिए भी खजूर तोड़ देती। वैसे भी खजूर का पेड़ मुझे खुद से नीचे पटकने की जहमत नही करेगा,,,कूद कर विषय पर लौट आऊँ जल्दी,,,,।
          अजब-गजब बेफिक्री के खजूर खा चुकी और आपको भी खिला दिए,,, पति महादेव को भी नाश्ता-पानी खिला कर उनके लिए भी 'टिफीन( यहाँ भी विराजमान)' पैक कर मै बैठ गई। सामने की सेन्ट्रल टेबल पर चार्ट पेपर के रंगबिरंगें कागज़ लेकर,, समझ ही चुके होंगें किस लिए,,,,,! हाॅली डे होमवर्क की तैयारी शुरू करवानी है,,। चुपचाप एकाग्रचित्त होकर इन रंगीन कागज़ों पर लकीरें खींच रही हूँ। यहाँ थोड़ी गम्भीरता आ रही है विचारों में,,, और अचानक एक बात कौंध उठी दिमागी आसमान पर,,,, "ख़्याल भी कितने ख़्याली होते हैं बाबा रे!!!!! मजाल के दिलो दिमाग की किसी एक शाख पर बैठ जाएं!!" पल मे शरारत तो पल मे शान्त ,,बड़े विचित्र,,बड़े उन्मादी,,। मै अब ख्यालों के साथ दूसरी शाख पर बैठने चली।
         मै अक्सर परेशान रहती हूँ इस बात को लेकर कि - कोरे कागज़ों पर मुझसे सीधी लकीरें नही खिंचतीं,,,। कोरे कागज़ोपर लिखने बैठो तो लिखावट सीधी नही आती । कई पृष्ठों पर आदतन टेढ़ी लकीरें खींच ,,खुद की अक्षमता पर स्वयं ही खींजते हुए,,,तभी अचानक दिमागी बत्ती लुपलुपाई,,,। आयताकार रंगीन कागज़ो के चारों किनारों को आधार बनाकर सीधी लकीरे खींच लकीरों का एक 'फ्रेम' बनाया,, और फिर खड़ी और पड़ी रेखाओं के सहारा बना पटरी( स्केल) पर बनी लम्बी और इंच -सेमी की खड़ी लाइनों पर टिका सीधी लकीरें खींच डाली,,,,,,,,,,,,,!!!!! उफ्फ सफलता चाहे जिस भी रूप मे मिले जिस भी आकार मे मिले,,,उल्लास भर देती है। यदि ठोकर खाकर आत्मानुभवों से मिले तो खुद को 'गौतम बुद्ध' से कम नही समझना चाहिए,,,,हा,हा,हा,हा,,,, लगता है सफलता के जोश मे कुछ अतिशयोक्ति हो गई।
        फिलहाल आपको 'कोरे कागज़ पर टेढ़ी लकीर से सीधी लकीर खींचने की "गौतम बुद्ध" बोध का वर्णन समझ आया के नही,,, मै इसमे खुद को फंसाना नही चाहती,, बस आपको फंसा कर मै बाहर निकल ली ।
      अब मैं ख़्यालों की एक दार्शनिक शाख पर जा बैठी हूँ। और सोच रही हूँ कि- जीवन भी इन चार्ट पेपरों की तरह अलग अलग रंग लिए आता है,,, एकदम कोरा,,, इस पर हमें अपने कर्मों का लेख लिखना होता है। कुछ लोगों मे इतनी सक्षमता होती है कि उन्हे किसी सीधी लकीर को सहारा बना कर अपने कार्मिक शब्दों का वाक्य विन्यास नही लिखना पड़ता है,,। वे इतने आत्मविश्वासी होते हैं जो एक बार कलम उठी तो लिखावट में ढ़ृढता की सीधाई मत्रंमुग्ध कर देती है। तो कुछ मेरे जैसे होते हैं,, जिन्हे लिखावट को सीधा रखने के लिए रेखाओं का आलंबन और अवलंबन फ्रेम बनाना पड़ता है, और सीधी लाइने खींचनी पड़ती हैं। यही नही कई वर्षों के असफल प्रयास के पश्चात लाइन सीधी खींचने का ज्ञान दीप प्रज्वल्लित होता है।
         नही जानती इस सफलता का 'माप' क्या है छोटी हैं या बड़ी,,पर इस उपलब्धि का उल्लास अर्थपूर्ण रहा।
ख़्यालों की गतिशीलता हतप्रभ कर रही है। जब लिखने बैठी थी तो विचारों मे शरारत और चुटीलापन था,,,और अब चित्त शांत और धीर है। टाइपिंग की प्रकृति आत्मसंतोष को दर्शा रही है। 'टिफीन समस्या' भी जैसे कुछ पल के लिए चपलता से स्थिरता का रूख ले चुकी है। एक गहन दीर्घ निःश्वास के साथ लेखनी को विराम ,,
शुभ दिनचर्या
शुभ ग्रीष्मावकाश !!!!