चेहरे को हथेली पर ना टिकाते तो क्या करते..
इब्न-ए-मरियम ना हुआ कोई..
मिरे इस दर्द की ना दवा हुआ कोई।
तेरा करीब होना हुआ होता..
टिकाने को चेहरा.. एक कंधा नसीब हुआ होता।
फिर किस बात का रोना हुआ होता!
ऐ मुहब्बत तू लहराते समन्दर के दूसरे कनारे पर झुके हुए फ़लक सी,
गुमराह करती रही मुझे,
बता -क़दमों को आवारा ना किया होता तो क्या होता?
बेख़ौफ़ अबशार सी बहती रही तू मुझमें,
जो तुझे बाहर छलका दिया होता तो सोच - की क्या होता??
कहती है दुनिया के- जां निचोड़ कर मुहब्बत कर,
पर सोच जो मैने दिल-जां-जिगर निचोड़ दिया होता
तो क्या होता !!
मेरी दरिया दिली का शुक्र मना,
मेरे बंद लबों का अहसान उठा-
जो ये वा हुआ होता तो क्या होता......
लिली
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