देखती हूँ नीला आकाश
तो दिखता है उसका अथाह नीलापन
उड़ते पक्षी, तैरते बदल
और उगते सूरज के साथ रंग बदलता
कैनवास...
नहीं दिखती कोई कविता
तैरती हुई बादलों पर...
उड़ती हुई पक्षियों संग...
सुबह से लेकर रात तक सूरज संग
रंग बदलते कैनवास पर...
अब सब वैसा ही दिखता है जैसा वो है
मैं भी नहीं देना चाहती उन्हें बिंबों
का भुलावा...कल्पना का स्वप्नलोक
अब कविता ने मुझे ओढ़ लिया है
वो अब दिखती है मेरे जैसी...
मैं दिखती हूँ अब-
कविताओं का एक प्रकाशित संग्रह
लिली