बुधवार, 26 मार्च 2025

कविताओं का एक प्रकाशित संग्रह


 देखती हूँ नीला आकाश 

तो दिखता है उसका अथाह नीलापन

उड़ते पक्षी, तैरते बदल

और उगते सूरज के साथ रंग बदलता 

कैनवास...

नहीं दिखती कोई कविता 

तैरती हुई बादलों पर... 

उड़ती हुई पक्षियों संग...

सुबह से लेकर रात तक सूरज संग

 रंग बदलते कैनवास पर...

अब सब वैसा ही दिखता है जैसा वो है

मैं भी नहीं देना चाहती उन्हें बिंबों 

का भुलावा...कल्पना का स्वप्नलोक

अब कविता ने मुझे ओढ़ लिया है

वो अब दिखती है मेरे जैसी...

 मैं दिखती हूँ अब- 

 कविताओं का एक प्रकाशित संग्रह

लिली




सोमवार, 3 मार्च 2025

प्रेम का विस्तार



प्रेम होता है अकस्मात् एक दिन

फिर चलता है साथ-साथ....
करीब-करीब...
खोया-खोया...
जागा-जागा...
रोया-रोया...
करता है फ़िक्र... 
बेचैन एक दूजे के बिना 
सुनता है 'कही' 
मुस्कुराता है सुनकर 'अनकही'
रातों में जागता
दिन में दुलारता
फिर लत
फिर आदत
फिर शिकवा-शिकायत
और फिर 
अकस्मात एक दिन..........
हो जाता चुप
देने लगता है 'स्पेस'
बना कर चलने लगता है'पेस'
वक्त के हाथों सब सौप
मन में बनाकर एक खोह
उच्छृंखल से सुप्त
मुक्त से विमुक्त
मोह से निर्मोह
आसक्त से विरक्त
शांत 
स्थिर
जड़
पहाड़
पाषाण
और फिर.........
इतिहास❤
लिली

पलाश

 







सुनो मेरे पलाश...झर गए हो तुम मेरी हृदयभूमि पर लेकर अपनी रक्तिमा, मेरी हरित संवेदनाओं को रंग रहे हो फाल्गुनी गुनगुनाहट से। बांध ली है मेरी मन मयूरी ने पग शिंजिनी। राग फाल्गुन में बजने लगी है ऋतु की सितार । कज्जल नयन हो रहें हैं चंचल। हस्तमुद्राएं बन गईं है अंग भंगिमा आमद के लिए है तैयार। प्रकृति दे रही है संगत मन के उल्लास को। गूंज उठे हैं पठन्त के स्वर... थई तत् ता..आ थई तत् आ...