सोमवार, 3 मार्च 2025

प्रेम का विस्तार



प्रेम होता है अकस्मात् एक दिन

फिर चलता है साथ-साथ....
करीब-करीब...
खोया-खोया...
जागा-जागा...
रोया-रोया...
करता है फ़िक्र... 
बेचैन एक दूजे के बिना 
सुनता है 'कही' 
मुस्कुराता है सुनकर 'अनकही'
रातों में जागता
दिन में दुलारता
फिर लत
फिर आदत
फिर शिकवा-शिकायत
और फिर 
अकस्मात एक दिन..........
हो जाता चुप
देने लगता है 'स्पेस'
बना कर चलने लगता है'पेस'
वक्त के हाथों सब सौप
मन में बनाकर एक खोह
उच्छृंखल से सुप्त
मुक्त से विमुक्त
मोह से निर्मोह
आसक्त से विरक्त
शांत 
स्थिर
जड़
पहाड़
पाषाण
और फिर.........
इतिहास❤
लिली

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