बुधवार, 27 अगस्त 2025

गणेश वंदना


 हे दुखहर्ता!

तुम सिद्धि विनायक
विघ्न हरो
 
हे श्री शुभदायक!
जय जय जय 
हे पार्वती नंदन!
देव,मुनि,मनु करे
सब जग वंदन।
प्रखर बुद्धि
तुम ज्ञान के सागर,
आनंददायक  प्रभु तुम!
 हम खाली गागर
सूर्य चन्द्र 
दो नेत्र तिहारे
असुर निकन्दन
जग पालनहारे।।
त्रिभुज ज्यामिति
सम मोदक हस्ते,
अष्टादश औषधि 
के तुम सृष्टे!
गं गं गणपति
हे गणनायक!
प्रथम पूजित तुम
मंगलदायक!
'ॐ गं गणेशाय नमः'
लिली 

शनिवार, 16 अगस्त 2025

आकाश कुसुम


 


मेघों ने खोल दिए हैं हृदय कपाट

अनवरत झरता जा रहा है 

संचित मेह तरल 

हृदय भूमि से निकल कर एक मनचली बेल

बढ़ाती हुई अपनी पेंग

 बारिश की टपकती हुई एक 

धार का लेकर अवलंबन 

जा पहुंची है आकाश के वक्ष स्थल तक

और देखो खिल उठा है

*आकाश कुसुम*


लिली