शनिवार, 16 अगस्त 2025

आकाश कुसुम


 


मेघों ने खोल दिए हैं हृदय कपाट

अनवरत झरता जा रहा है 

संचित मेह तरल 

हृदय भूमि से निकल कर एक मनचली बेल

बढ़ाती हुई अपनी पेंग

 बारिश की टपकती हुई एक 

धार का लेकर अवलंबन 

जा पहुंची है आकाश के वक्ष स्थल तक

और देखो खिल उठा है

*आकाश कुसुम*


लिली


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