मेघों ने खोल दिए हैं हृदय कपाट
अनवरत झरता जा रहा है
संचित मेह तरल
हृदय भूमि से निकल कर एक मनचली बेल
बढ़ाती हुई अपनी पेंग
बारिश की टपकती हुई एक
धार का लेकर अवलंबन
जा पहुंची है आकाश के वक्ष स्थल तक
और देखो खिल उठा है
*आकाश कुसुम*
लिली
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