शुक्रवार, 17 मार्च 2017

एक सांझ,,,,, प्रिये की यादों मे ठिठकी हुई,,,

(चित्र इन्टरनेट से)

ऑफिस की घड़ी मे शाम के 5 बजे की टिकटिक के साथ आज आवेग जी का मन अपनी प्रिये की याद से टिकटिका उठा। कुछ पल के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर दस्तख़त  करते उनके हाथ रुक गए ,,,,,,,,,,,,,,,,,और गालों पर जा      टिके,,,,,ऑफिस की खिड़की के बाहर निगाहें शाम के सिंदूरी आसमान मे,,, अपनी प्रिये के मुस्कुराते मुखमंडल की छवि की कल्पना कर ख़यालों मे डूब गई। वे मन ही मन प्रिये से संवाद करने लगे,,,,,मेरी प्रिये,,,,,,,!!!!!                                                               
                                                            
सांझ आहिस्ते-आहिस्ते उतर रही है,,,,,,। सूरज मद्धम होते जा रहा है,,,,,,। दिन करवट ले रहा है। यह सांझ सबको किसी न किसी बहाने बाहर निकाल लाती है, ,,,,,,,,,प्रकृति के स्नेहिल परिवेश में सहभागिता के लिए। ऐसे में प्रिये तुम बहुत याद आती हो,,,,,,।  मैं प्रतीक्षारत रहूँ और तुम आ जाओ। ,,सूरज की तरह मेरी आँखों की चमक तथा चांदनीं सी दमकती तुम - बस,,,, यहीं सांझ ठिठक जायेगी यह देखने के लिए कि सूरज सी तपिश भरी आतुर निगाहों तथा चांदनीं सी झिलमिलाती प्रिये के मिलान पर क्या होगा। सांझ ठिठकी सी ढलती जाएगी,,,, हवा शीतलता में वृद्धि करते हुए मौसम को संतुलित रखने का प्रयास करेगी,,,,, बत्तियां आँखें खोल निहारना आरम्भ कर देंगी,,, दूर गगन में चाँद भी छुप-छुप कर निहारता रहेगा। जानती हो प्रिये,,,,! सांझ को तुम्हारा मुझसे मिलना कितना परिवर्तन ला देता है। यह तपिश भरी निगाहें न जाने कब शीतल हो बर्फ सी स्थिर हो जाती हैं, अपलक तुम मे समाहित होते हुए,,,,परिवेश सुगंधमयी और रंगमयी होने लगता है। तुम्हारी पालकें,,, रह-रह कर बंद होने लगती हैं। ना,ना,,,ना प्रिये!! अब और वर्णन नहीं करूंगा। ओ प्रिये,,!, 
ओ मेरी मनभावन,,,,! ओ मेरी सोन चिरैया,,,! सुनो न, दिल पुकार रहा है, ,,,ठिठकी सांझ तुम्हारे दरस की कामना लिए है। अब और न सताओ मेरी गौरैया। चली आओ न मेरी प्रिये।
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कल्पनाओं के ख़याली संदेशवाहकों ने जैसे पंख लगा उनका संदेश उनकी प्रिये तक जा पहुँचाया,,,,,,,,।  प्रियतम के अह्लादित प्रेमसुरभित संदेश को पाकर 'प्रिये' लजाई ,,सकुचाई,,,,। संदेश वाहकों के हाथ,, अति प्रफुल्लित हो उसने अपना पैगाम सिंदूरी आसमान पर लिख भेजा,,,,

"आज पहली दफा सांझ को इतना मखमली महसूस किया,,नीड़ को लौटते पंक्षियो की चहचहाहट,,, 
तुम्हारे संदेश को मुझ तक पहुँचाती सी लगी,,,, 
अस्त होते सूरज  की लालिमा मे तुम्हारे मिलन की ललक प्रस्फुटित होती प्रतीत होने लगी,,,,   ।                      
शाम स्थिर सी हो गई,,पर एक हलचल सी अपने अंतर मे छुपाए,,,। जैसे की मेरा मन भी तुमसे मिलने को अधीर हुआ जाए,,,,।अनेको भावों की हल्की हवा,,इस बेचैनी को सुकून देने का प्रयास करती सी प्रतीत होने लगी।                 
तुम्हारे प्रेमाकुल सम्बोधन ने संध्या बेला को नवविवाहिता सा बना दिया है,,,।                                                      
जो अपने प्रियतम के घर आने की प्रतीक्षा मे श्रृंगार कर  घर की ढोयोड़ी पर घूँघट डाल पथ निहार रही है,,।      
          
एक असीम सुख की परिकल्पना से जनित अनुभूति से आवेग जी की आंखें अधखुली और चेहरे पर मुस्कान,,,, लिए कुछ देर उसी रससागर मे डूबी बेसुध पड़ी रही। एक गहरी निःश्वास के साथ उन्होने खुद को समेटा और वापस दस्तावेज़ों को निबटाने मे जुट गए।                                                               
उनकी सोन चिरैया,,,उनकी गौरैया उनकी प्रिये,,, फिर उनके ख़यालों मे आएगी,,,,,, शायद फिर किसी ,मखमली ,,,महकते एहसासों के साथ कोई नई अभिव्यक्ति लिखवा जाएगी,,,,,,,,।

बुधवार, 15 मार्च 2017

मै नारी ,,,,,,,, मै कौन???

(चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)

क्षणिक नारी मनोभाव

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उलझी बातों से जीवन सुलझाती,,,
या
सुलझी बातों मे जीवन उलझाती,,,

मै सारी या आधी

मै मझधार या किनारा,,

मै धार की पतवार

मै मोह या माया

मै विरक्ति या आसक्ति

मै वृष्टि या छाया

मै सत्य या भ्रम

मै दिगभ्रमित मदमस्त हवा

या सुरभित मधुमासी बयार

मै श्रद्धा या दुत्कार

हे मनु मै तुम्हारी जीत

या तुम्हारी हार,,,,,,

मै नारी ,,,,,,,,,,

सृष्टि का वरदान

या विध्वंस गान ,,,,

मै कौन,,,,?????

मंगलवार, 14 मार्च 2017

पिया परदेसी ,,,,, सखी कैसे खेरूँ मै होरी,,,

                    (चित्र इन्टरनेट से )
~लघुकथा~

होरी की खुमारी मे मै डूब रही सखी,,,,
बोल ना कैसे मनाऊँ अबके होरी,,,,,,,?
रंग ले आऊँ जाय के हाट से,,,,चल मोरे संग,,,,।
लाल रंग लगवाऊँ के,,,, पीरा,,,, हरा रंग चटखीला,,, के गुलाबी नसीला,,,,
ऐ सखी बोल ना,,,,, कुछ तो बोल,,,??
प्रीत की ये पहरी होरी है रे! मन बौराया है,,,सुध-बुध हार बैठी हूँ,,,,।
पर सुन ना ,,, लाल रंग जो उनसे लगवाऊँ तो दिखबे ना करी,,, उनके प्रीत का लाल रंग बहुत चटख है रे,,,,,, देख कैसे लाज से गाल गुलाबी हुए जाए मोरे,,,,,
उईईईईईई माँ,,,, गाल का गुलाबी रंग तो ,,,गुलाल के मात दे रहा रे,,,,,,!!!!
चल तो चटखीला हरा  ही लै लूँ,, सइय्या से यही रंग लगवाऊँ ,,,, पर सखि लागे है एहो रंग ना चढ़ी हम पर,,,
,उनके प्रेम के सावन मे भीगो मोरा मन बारहों मास हरा-भरा रहे है,,,,,,,, अब तो जे होरी को हरो रंग भी आपन चटखपन ना दिखा पावेगा।
      पीरा ही लै लूँ फेर ,,,,?
अरि कुछ तो बोल,,,!!
अबके बंसत मोरे सजन मोहे बसंती बना गए,,,,ध्यान करते ही तन मन सब बसंती ,,,,, रहे देती हूँ यो पीरा रंग तो फीका पड़ जाएवेगा,,,।
    सखी खींझकर बोली,,,,तू हमका कछु ना बोलै देत है ना,,, बतावै देत है,,,, ऐसी बाबरी हुई है,,खुद ही सब पूछै,,खुद ही बतलावै,,,तू रंग ना खरीद,,,, अपने सजन के हर रंग मे तू रंगी है,,,,मेरा बखत ना बरबाद कर ,,मोहे जाने दे,,, माई के साथ गुझिया बनवा वे का है हमे,,,बोल सखी भी भाग गई।
अरि सुन तो ,,,,,,,! अच्छा तू बतला दे,,, ऐसे मोहे बिपदा मे अकेली छोड़ के ना जा,,, अरी ओ,,,,,सुन ना,,,,,!!!  येहो भाग गई अब का से कहूँ अपने जिया की,,,? मै रंग देख मतवारी हो रही,,,हर रंग मोहे पिया के याद दिराए ,,,, बस मन मे ही सपने संजोए हूँ,,,, जो अबके होती संग तोहारे,,,,,रंग से ना  भागती ,,, तोहारे रंग मे रंग जाती,,,,,तोहारी प्रेम की फुहार मा तुम संग लिपट भीग जाती,,,,,तुम रंगरेज मोरे,,,,,,सब रंग मे रंग,, सतरंगी चुनरिया सी लहराती,,,,, इतराती,,,,बलखाती,,,,।
मोहे होरी के रंग अब ना भाए री,,,,!
बस पिया रंग रंगी मै तो बस उन्ही के रंग रंगी,,,,,।
होरी कैसे खेरूँ,,,
कैसे बताऊँ जिया की तड़प,,
 एक तो पिया परदेस,,
  ना रंग लगे ,,,,
  ना अंग लगे,,
तू जा अपनी माई के पास रे ,,, सच ही तो कह रही ,,मै तोहरा बखत बरबाद कर रही,,,।

शुक्रवार, 10 मार्च 2017

होरी आवन वारी है,,,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)

             होली की मीटिंग चल रही है,,, 😃

           (विषय सुझाने के लिए नेहा को धन्यवाद



            गोपियों को छेंक रंगने की तैयारी है,
            टोली बन रही नेता कृष्ण मुरारी हैं।
            भावों के रंग बनने लगे हृदयों मे,
            जांच रहे चल रही ठीक पिचकारी हैं।

     फाग संग ढोल बजे गूँजे धुन मतवारी है
     मटक रही लचक रही प्रीत मनोहारी है
     श्याम संग गुलाल रंग गोपियां बलिहारी हैं
     खीझ रहीं रीझ रहीं उमंग सुखकारी है।

             चाल रचें रहे सखा सखियां कान पसारी हैं
             रंग संग अंग लगाकर छेड़न की तैयारी है
             प्रेम राग रचें कान्हा ,बांसुरी रियास जारी है
             अर रररर सरर रररर होरी आवन वारी है।

     मन भय रहे नटखट होरी की खुमारी है
     रंग रंग मोहे रंग प्रीत-रंग राधा मनहारी हैं
     नयन रहे सकुचा अंग खिले फुलवारी है
     कहे अबके ना भागूँ प्रेम तोहसे नटवारी है।

               होरी की तैयारी है ,,,फाग धुन प्यारी है
               रंग संग प्रेम उड़े राधासंग कृष्ण मुरारी हैं
               उड़े चुनर हिले अधर मिलन को पुकारी हैं
               होरी आवन वारी है,जी होरी की तैयारी है।

बुधवार, 8 मार्च 2017

फिर 'मै',,,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,

                       (चित्र इन्टरनेट से)
       

मुझे
तुममे रहने दो,,,,,
नही चाहती कि,
तुम्हारे हृदय के
मखमली गलीचों से
बाहर कदम निकालूँ,,,,,
बहुत नरम हैं ये
एहसासों के
पुरसुकून गलीचे,,,

ये जो तुमने मेरे लिए
अपनी प्रीत-प्रसून से
सजा दिये है,,,,,,
मेरे सिरहाने
अपनी सुगंधित,
सुवासित
भावाभिव्यक्तियों के
रजनीगंध
आसक्ति के गुलदान मे,,,,,,,
'मै' ,,,,, अब 'मै' नही रही,,,,,

कभी तुम्हारी
अभिव्यक्तियों की
रजनीगंधा सी ,,,
कभी,,तुम्हारे
प्रीत-प्रसून सी,,,,
कभी तुम्हारे एहसासों के
मखमली गलीचों सी,,,,,,
महक रही हूँ ,,,
चेतना शून्य हो
विलीन हो रही हूँ तुममें,,,,,,

ये जो रूनझुनाते नूपुर
तुम्हारी यादों के,,,
जब हौले से बजते हैं,,,,,,,
इनकी खनक
नख से शिख तक
 झनझना देती है,,,,,
जब प्रेमसिन्धु से गहरे
तुम्हारे दो नयन
मुझे निहारते हैं,,,,,,,
मै एक ही गोते मे ,
जैसे कहीं
डूब जाती हूँ अनंत में ,,,,

अद्भुत रूपहला संसार है,,,
शान्ति है,,,
परमानंद है,,,
और बस
मै और तुम हैं,,
अपने अलौकिक संसार मे विचरते,,,,

मेरा नाम
सोचने मात्र से,,,,,,
 तुम्हारे हृदय मे प्रवाहित
पुरवैया से भाव ,,,,,
अधरों पर
मुस्कान के कम्पित पत्तों से
झूम उठते हैं,,,,,,
फिर 'मै' ,,,,, 'मै' नही रहती,,,,

पुरवैया के झोंकों से
प्रभावित मेघ सी,,,,,
उल्लास के क्षितिज में,
उमड़ती-घुमड़ती
बरस जाने को आतुर हो
हवा संग
तैरने लगती हूँ,,,,

ये बलिष्ठ स्कन्ध,,
ये बाहुपाश,,,
हृदय के स्पंदन ये गूजँता,,,
'मेरी प्रिये" का
रसचुम्बित
चुम्बकीय सम्बोधन,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!
फिर 'मै' ,,,,,, 'मै' नही रहती,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मै
चंचल 'जाह्नवी' सी लहराती,,,,,,,,,
तुम्हारे हृदय के
महासागर मे
घुल जाती हूँ,,,,,,
उछलती ,,अह्लादित 'मृग' सी
कुलाचें भरती,,,
तुम्हारे विस्तृत वक्षस्थल के,,
अभयारण्य् मे 
लुप्त हो जाती हूँ,,

'मुझे','
तुममे' ही एकसार होकर
गढ़ना है जीवनकाव्य,,,
'मुझे',,,,, बससससससस्
तुममे ही रहना है,,,,,,
तुममे ही रहना है,,,,,,,,!!!!!!


शुक्रवार, 3 मार्च 2017

गुल्लू बोला मम्मी से,,,,,,

                    (गुल्लू अपनी अध्यापिका के साथ)
         

                        *बालकविता*


     गुल्लू बोला मम्मी से ,
     आज क्लास मे मैडम जी ने
     बड़े पते की बात बताई-
     खेल-खेल मे हम बच्चों कों
     बड़े मज़े की बात सिखाई।
     
               पता है तुमको अपनी पृथ्वी,
               गोल है बिल्कुल गेंद के जैसी।
               लटक रही आकाश मे ऐसी,
                बिन डंडी के सेब के जैसी।

   बिना थके चक्कर ये काटे,
   सूरज के     चारो ओर।
   जादू की शक्ति तो देखो,
   सब कुछ खींचें अपनी ओर।
         
            बातें सुनकर मम्मी भी
            मन ही मन मुस्काईं।
           बात ज्ञान की मैडमजी ने,
           बड़ी सहजता से सिखलाई।

गुरुवार, 2 मार्च 2017

प्यारी गौरैया

                     (चित्र इन्टरनेट से)

                           *बालकविता*


   गुटुर-मुटुर मुंडी घुमाए गौरैया,
  खिड़की पे झांक-तांक मचाए गौरैया।
  फुदक-मटक इधर-उधर नाचे गौरैया,
  भोली सी सूरत बना लुभाए गौरैया।
           
              मिट्टी की नदिया मे डुबकी लगाए गौरैया,
              झुंड संग, क्रीड़ामग्न मस्ती रचाए गौरैया।
              हल्के से चहके,कभी शोर मचाए गौरैया,
              जम के पैठे,कभी फुर्र से उड़ जाए गौरैया।
  
  छोटी सी काया,भावों की माया गौरैया,
  मेरा मन भी चटख चंचल बनाए गौरैया।
  चहक-बहक रहा हृदय बनूँ मै भी गौरैया,
  उदक-फुदक ,गुटुर-मुटुर प्यारी गौरैया ।