रविवार, 18 अगस्त 2019

एक टुकड़ा ज़िन्दगी,,,

                    (चित्राभार इन्टरनेट)

मुझे बारिश से तर सड़कों पर
आस-पास की सब्ज़ महकती हरियाली
के बीच
तुम्हारे संग चुपचाप चलना है
किसी फूँस की बनी  चाय की टपरी
पर रूक कर,,
चाय पीनी है,,,
जो
अचानक धमक पड़ी बारिश
में मिली पनाह हो,,,,,
आस पास कुछ और ना हो
कुल्हड़ की चाय से उठता
धुँआ और तुम्हारे मेरे साथ
की गरमाहट,,,
बस यही दो गर्माहट का
जरिया हो,,
बाकी सब बारिश में भींग
कर कपकपाता ,,ठिठुरता दिखे,,
मुझे चुप ही रहने का मन है
बोलना बस तुम,,,
तुम्हारी कहन के सुर संग
मैं बारिश के साज़ों
की संगत बिठाती
बस शरमाऊगीं,,
मुस्कुराऊँगी,,या फिर
अपने भीतर उठ रहे एहसासों
के बवंडर को छुपाने के खातिर
ज़ोर का ठहाका लगाऊगीं,,,
पूरा ना सही
एक टुकड़ा ज़िन्दगी
मिल जाती
किसी मोड़ पर ऐसी भी ,,,
बरसात बन के
चाय की टपरी बन के,,
एहसासों का बवंडर बन के
लिली❤

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