मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

पिया का संदेस



                  पिया की बावरी बन गई अंखियां,
                  करेजवा को न भाएं अब प्यारी सखियां।
                  जाने हूँ न ठाह इनकी पिया का देस,
                  जिया को ठंडक पहुँचाए तोहरा संदेस।

रात रोए बिरहन सी,दिन लगे भार,
भाए नही मोहे कोई साज न सिंगार।
तन-मन सब वार तोह पे जोगन बन जाऊँ,
तुम श्याम पिया मेरे मै मीरा कहलाऊँ।

              जादूगरनी तुम कहो,मै कहूँ चितचोर,
              तुम संग उलझ गई सजन जीवन की डोर।
              मांग मे नही सिंदूर तेरे नाम का तो क्या,
              आत्मा ने रच लिया तेरे संग ब्याह।

सागर सी प्रीत तेरी मै सरिता की धार,
जनमों से हूँ मै सजन तेरे हिया का हार।
जाने हूँ फिर भी ठाह नही पिया का देस,
जिया की ठंडक एक तोहरा संदेस।।

1 टिप्पणी:

  1. लिली जी के लेखन की क्या करूँ बतियाँ
    सखी-सहेली कहें अलबेली लिखे हर बतियाँ
    आज मिश्रित भाषा समय में ऐसे-ऐसे शब्द
    कविता में कुशल पिरोयी मन-मन को बतियाँ

    मांग में सिंदूर नहीं चाहत युगों की सदियां
    आत्मा ने रच लिया कर टंकित भाव नदियां
    सरिता की धार हिया का प्यार रच संसार
    मन अभिसार करे गुहार फुदक उठी बतियाँ

    बधाईयां आपको जो गद्य-पद्य दोनों लिखें
    अभिव्यक्तियाँ निखर गई निरंतर प्रवाह पतियाँ
    लिली की क्षमता अद्भुत पढ़ झूम उठे बुत
    यदि यही रहा लेखन रुख, गूँज उठे सादिया।

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