बुधवार, 19 दिसंबर 2018

मोनोलाॅग,,,,,,,एक स्त्री का खुद से

सुबह के नौ बज चुके हैं,,ड्राइंगरूम में बैठी संजना इस समय अकेली होती है। बच्चे स्कूल जा चुके हैं पति ऑफ़िस। पूरी तरह से एकान्त ।
    रोज़ इस समय मोबाइल पर फेसबुक या व्हटसऐप पर वह सक्रिय रहती है। पर कल रात दोनो मोबाइल एप्लिकेशन्स् उसने डीलीट कर दीं । ऊब चुकी थी दिखावटी ढकोसलों से। बनावटी रिश्ते, एक बेबुनियादी होड़ हर तरफ़।
टेबल पर एक पत्रिका उठाकर पढने लगी।
एक कहानी में पात्रों के संवाद में एक जुमले पर निगाह अटक गई। उसने पत्रिका को वापस टेबल पर रख दिया । बस वही बात बार-बार दिमाग में चक्कर काट रही किसी धूल भरे बवंडर के की भांति,,,,,, "जर,जोरू,और ज़मीन इस संसार में हर फसाद का मूल",,,,
ना जाने क्यों आज यह जुमला उसे भीतर तक खोद रहा,,,,,!!!
        उसकी आँखें तमाम अनबुझे सवाल लिए सोफ़े को देखती हैं,,,तो कभी डाइनिंग टेबल को,,,कभी फ्रिज को देखती हैं,,,तो कभी सामने रखे दीवान को,,,।
      ये दीवान ना जाने कितने सालों से उसी एक जगह रखा हुआ है,,,,रोज़ उस पर लगा कवर,कुशन आदि झाड़ कर लगा दिए जाते हैं। आज गौर से देखा तो दिखा कि सनमाइका के एक कोने पर किसी चीज़ के धब्बे बड़े प्रकट रूप से दिखाई पड़ रहे,,,उसको लगा जैसे ये धब्बे उसके भीतर की कुंठा,पीड़ा जो बरसो दिल में दबी थी,,असह्य हो बाहर उजागर हो गई हो।
       संजना से जैसे वो दीवान कह रहा हो, ,,, क्या मैने कभी अपने वजूद की दावेदारी को लेकर कोई शिकायत की???? कितने सालों से एक ही जगह पड़ा हूं,,,।
      अचानक लगा जैसे किचन के पास ही रखा फ़्रिज एक हल्की सी हँसी के साथ कुछ कहने के लिए गला साफ़ करते हुए संजना से मुख़ातिव हुआ,,,,,
' याद है तुम्हारे सास-ससुर का बरसों पुराना 180 लीटर वाला केल्विनेटर  फ्रिज जब खराब हो गया था,,?? तुमने जैसे तैसे उससे ,अपने इलेक्ट्रीशियन महेन्द्र को बिना किसी दाम लिए  देकर निजात पा ली थी,,!!"
  ताकि तुम अपनी पसंद का नए चलन का नया फ़्रिज खरीद सको,,, तब इतने सालों तुम्हारे परिवार की खिदमत् में लगे रहे उस खराब पुराने फ्रिज ने तुमसे कोई प्रश्न किया,???? "
संजना ने बिना किसी रोध-प्रतिरोध के- सिर हिला ते हुए एक शब्द में जवाब दे दिया- "नही"।
      पर अचानक उसे लगा कि उसके पास एक वाजिब जवाब है,,;और उसे वह रखना चाहिए ,,, भूत के गलियारे में जाते हुए ज़मीन की तरफ़ देखते हुए वह बोल पड़ी -" पर तब वो खराब हो चुका था,,,,,।
 कितनी बार उसको ठीक कराती???
जितने पैसे उसको रिपेयर करवाने में लगे,,,,उतने में एक नया फ़्रिज आ जाता है"।
 "एक सामान था",,,,उसकी उपयोगिता अवधि उतनी ही थी,,,,जो तब पूरी हो गई थी,,,दे दिया।
"और फ़िर कबाड़ में थोड़े फ़ेका,,!!
महेन्द्र को दे दिया,,,,वो उसको ठीक-ठाक कर के कुछ और दिन इस्तेमाल कर लेगा।"
    कहते हुए उसकी नज़रे फ़्रिज से जा मिली,,,,और वो बस एक बड़ी सी मुस्कान लिए उसे देख रहा था,,, मानों कह रहा हो,,,,जिस वैचारिक बवंडर में तुम चक्कर खा रही हो,,,उसके हर प्रश्न-वलय का जवाब तो तुम जानती हो,,,,फिर क्यों अनजान बनी चक्रवाती थपेड़ खाती रहती हो?" खैर उसने इस मौन वक्तव्य संप्रेषण के अलावा कुछ और नही कहा।
       संजना कुछ देर शून्य दृष्टि से अपने घर के हर एक सामान को देखती रही,,,,सब मूक,जड़, और जिनका अस्तित्व बस उतना ही था जब तक उनकी उपयोगिता उसके घर में थी,,, अपनी जगह निर्जीव से गड़े हुए से दिखे।
      उथल-पुथल का तूफ़ान लिए वो उठी । अपनी दैनिक दिनचर्या के कामों को निबटाने लगी। उसे समझ नही आ रहा था,,,,
क्या वह भी एक फ़्रिज थी???
क्या वह भी एक सोफ़ा या दीवान थी,,,????
जन्म लेने से लेकर 23 साल की युवावस्था प्राप्त करने तक जैसे उसे तैयार किया जा रहा था,,,किसी वर्कशाॅप में????
उसकी डिज़ाइन,,रंग,उसकी मशीनरी सब ठीक तरीके से बना कर उसे आकर्षक पैकिंग में लपेट कर,,,नाम,'मैन्यूफ़ैक्चरिंग डेट',,,आदि,आदि आवश्यक जानकारियों समेत,,,, "हैंडिल विद केयर" की पंक्तियां  लिख दी गईं थीं।
    ऐसा लगता था मानो कारखाने के कारीगरों का सारा भावनात्मक जुड़ाव इन 'केयरिंग' पंक्तियों में परिलक्षित हो।
  फिर क्या,,,,कोई ज़रूरतमंद उपभोगता उसे अपनी ज़रूरत पूर्ति के लिए ,,,,अपने घर ले आया।
     उसे भी इन तमाम निर्जीव, जड़, साजो सामान के जैसे कोई तकलीफ़ ना होती,,,यदि वह अपने वजूद को तलाशने के लिए, अपनी खुशी तलाशने के लिए, उपभोगताओं के जैसे खुद को भी सृष्टि की तमाम लौकिक-अलौकिक  सौन्दर्य भोग करने के लिए उपभोक्ता बनने की बेवकूफ़ी ना करती।
     वह भूल गई थी इस सृष्टि के कारखाने में उसका सृजन मात्र 'भोग' करने के लिए हुआ है,,,वह मात्र एक भोग्या है।   जिसे यह पुरूष प्रधान समाज बस अपने दंभ और पौरूष प्रदर्शन के लिए करता है।  इसलिए ही शायद ये जुमला बना,,,
जर,जोरू,और जमीन,,,,,,,, "जर जोरू,पुरूष और जमीन " नही बनाया गया,,,,,,,,,

 



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