मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

श्राद्ध

आवारा बेलगाम काल्पनाएं कितनी भयावह हो सकती हैं,इसका पूर्वानुमान नही लगाया जा सकता।
जब तक आप उस ब्लैक होल में खींच नही जाते
तब तक वीभत्स अंधकार और अनिश्चित पतन की
की ओर किस तेज़ी से गिर रहें हैं,,
उसकी गति,रूप, आकार का अंदाज़ा नही लगाया जा सकता।
परन्तु कुछ होता है हमारे अंदर जो रह रह कर हमे अनेक माध्यमों से चेताता रहता है। परन्तु हम किसी मदमस्त हाथी से महत्वाकांक्षी कल्पनाओं के रूपहले पाश में बंधे,आँखों को चौंधिया देने वाले प्रकाश से अनंत अंधकार की ओर खींचे चले जाते हैं।
     कुछ ऐसा ही सफर पर है शामली । अपने कंधों पर अपने अपूरित सपनों की खंडित देह लादे बैठी थी उनका अन्तिम संस्कार करने। मृत आकांक्षाओं के मुख पर मरणोपरान्त भी एक लोभनीय आकर्षण स्पष्ट दिखता था। जैसे कह रही हो -"मुझे मृत मत समझ, आ एकबार फिर मेरी आवारगी की चपेट में , थथार्थ की शुष्कता में कुछ नही धरा। जीवन का स्वर्ग मेरी पनाहो में है।"
"आजा ! क्यों मेरी मृत देह को अग्निकुंड में झोक रही मूर्ख?'
आ एकबार चूम ले मेरे मुखारविन्द को मैं पुनः जीवित हो तुझे फिर उड़ा ले चलूं, बादलों के पार आसमान के नीले समन्दर में। जहाँ धूप सुखाती नही है।
पुष्प झरते नही हैं।
बसंत जाता नही है । आ ना,,,,क्यों कान बंद कर रखें हैं तूने?
पर शामली पूरी तरह से श्राद्ध कर्म के अनुष्ठानों में मग्न थी।
सब सम्पन्न होने के उपरांत शान्ति जल का छिड़काव हुआ,,,और उसकी आँखें खुल गईं।
   वो अपलक अंधकार में कमरे की छत तलाशती, स्थिर शरीर में धड़पड़ाती दौड़ती दिल की धड़कनों को लिए शून्य सी पड़ी रही।
      किसी तरह मध्यरात्रि की उचटी निद्रा को पुनः सुला कर । प्रातः हुई। बहुत कुछ देखा सुबह की टहल वाले वही चित परिचित मार्ग पर। सूखी पात पथिकों के पांवों तले कचर कर धूल संग एकाकार हो गईं हैं। सूखी घास अब सींचने पर भी हरितिमा ना पाएगीं। कोयल की कूक खिसियाई सी लगी। धूप ने सुबह की हवा में लू सा असर कर दिया। सबकुछ जैसे शुष्क हो चुका है। स्वप्न में बेलगाम कल्पनाओं का श्राद्ध अपने हाथों कर जैसे शामली अब यथार्थ के असल धरातल पर चल रही थी।
       कुछ वर्ष पूर्व देव के उसके जीवन में आने के साथ उसने इस धरातल पर चलना छोड़ दिया था। वह उड़ रही थी।
आत्म के अंश पाने के उन्माद में बावरी सी अपने परमात्म की आवाज़ को भी अनसुना करती बस उड़ रही थी,,,बस उड़ रही थी। उसे खुद पर दंभ हो चला था कि- सच और स्वप्न का सही मिश्रण करना उसे आता है। परन्तु महत्वाकांक्षाएँ अट्टाहास कर रहीं थी उसके इस नादान दंभ पर और विजयी महसूस कर रही थीं अपने मासूम नादान शिकार पर।
     तमाम संकेतों को नज़र अंदाज़ करते हुए आखिर  वह ब्लैक होल के अंधेरों में आ फंसी। उसे अपनी उत्कट बेलगाम कल्पना जगत का श्राद्ध आज करना पड़ा।

रविवार, 28 अप्रैल 2019

#ऑनलाइन_मुहब्बत 🙃 लघुकथा

           (हिमोजी स्टीकर हिन्दी की पहली स्टीकर ऐप)



प्रेम ने बहुत देर तक व्हट्सऐप पर लगी सना की डी पी निहारने के बाद मैसेज किया,

सुनो! तुम्हारी आँखों का रंग क्या है???

सना - 'हाय री किस्मत! अब मेरे इतने बुरे दिन आ गए।
          खुद की आँखों का रंग आइने में देखूं !
          अरे तुम प्रेमी बन कर जीवन में किस लिए आए       हो?
प्रेम - अरे तुम तो शुरू हो गई बाल की खाल नोंचने

पूरा वाक्य प्रेम लिख भी ना पाया कि- सना ने फिर एक विस्फोटक कटाक्ष दे मारा।
  'चार साल से प्यार कर रहे मुझे मुझसे पूछो मुझे तुम्हारी आँखों का रंग ,बालों का रंग कंधे के तिल का रंग सब पता है।
  और तो और आज ये भी पता चल गया तुम्हारे दिल का रंग बड़ा गहरा काला है
😭😭😭😭😭😭😭😭😭

प्रेम- अरे बाप रे! तुम तो धोबी पछाड़ देने लगती हो।
        वो तो तुम्हारी डी पी में आँखे भूरी भूरी दिख रहीं।
        तो मुझे डाउट हुआ ,

सना- डाउट हुआ मतलब???? क्या डाउट हुआ?
         बोलो ? आज पता चल गया तुम मुझे ध्यान से देखते ही नही😪
       जितनी भी तारीफ़े करते हो सब झूठी होती हैं।
         कितने बड़े झूठे हो !!🤧🤧🤧🤧

प्रेम को महसूस हुआ उसने अन्जाने में एक बड़ी गलती कर दी है। बात मज़ाक मज़ाक में बढ़ती जा रही।
उसने तुरंत ढीली लगाम को खींचते हुए कहा-
      "जानू तुम्हारी  आँखें इतनी गहरी हैं, के इन्हे जी भर देखने से घबराता हूं। कहीं डूबा तो निकल ना पाऊंगां।
इतनी नशीली हैं के की मदहोशी में बहका तो सम्भल ना पाऊंगां ।
 मुझ गरीब की हालत तुम क्या समझों ।
 हाय ये 'भूरी काली गहरी आँखे' जिस दिन जी भर के देखा उस दिन ले डुबूगां अपने साथ तुम्हे भी मेरी क़ातिल

सना का दिल अब तक पिघल चुका वो बोली -"अरे तुम्हारा कोई दोष नही ये फोटो ही मैने फोटो शाॅप कर दी थी।

प्रेम - तभी तो,,,,,,,,! जानू मैं इतना भी नालायक नही के अपनी ज़िन्दगी को ना पहचानूं। इन आँखों के समन्दर में ना जाने कितने तलातुम के लुफ़्त उठाए हैं मैने ।
ये सब 'ऐप एडिटिंग' का दोष मुझ मासूम को कटघरे में खड़ा कर दिया।😪

सना ने तुरंत अपनी एक ताज़ा बिना एडिट फोटो प्रेम को भेज दी।
प्रेम - हाय क्यों जान लेने पर तुली हो?

         इन सुरमयी मयखानों में
         इतनी मुहब्बत से ना पिला साक़ी
         पयमाना तेरा दीवाना है वो भी
          काँच से बना,,,,,

सना- ❤

लिली

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

तभी बात बनती है

                   (चित्राभार इन्टरनेट)


बाज़ारीकरण के इस दौर में, हर चीज़ समसामायिक हो
तभी बात बनती है।

कही बातें भी फैशन के अनुकूल  बदलें लिवाज़
तभी बात बनती है।

टेक्निकल जुमलों के दौर में,मुहावरे बाबा आदम के दौर के!!

कुछ अपग्रेडेड साफ़्टवेयर के तड़के लगाओ सनम,
तभी बात बनती है।

शिव जी पर रचे भाव  मंगलवार को लिख दिये !
ईद का हो माहौल और इस्टर की कह दिए!

उम्ह! कुछ सेवाइयों की छेड़ो मिठास,,
तभी बात बनती है।

कहाँ दिल,चाँद,ज़मी,आसमां,इन्द्रधनुष मे सुकूं खोजते हो,

दहकते मुद्दों की बदलती बिसात पर करो बात
तभी बात बनती है।

इसकी करो खिंचाई,उस पर करो हमला आत्मघात

भाई,,भाई का करे हर बात पर प्रतिवाद
तभी बात बनती है।

लिली😀

दीवाने हो गए

                    (चित्राभार इन्टरनेट)


कुछ इसकद़र बढ़ी मुहब्बत
के दीवाने हो गए
जिस गली में था उनका घर
उसी से बेगाने हो गए,,

जिस चेहरे को कहा चाँद
और चाँदनी से नूर था
बेनूर बना लिया इसे,और
उसी से अन्जाने हो गए।

मौजूदगी मेरी थी कभी
हवाओं में घुली मिली
मनचली हुईं फ़िजाएं,और
बदले मेरे ठिकाने हो गए

बिन कहे ना दिल कि
बात उनको करार था
बस सोच मुस्कुरा दिए,
सुने उनको तो अब ज़माने हो गए।

बुधवार, 17 अप्रैल 2019

कल्पनाओं को अपना 'यथार्थ' मिल चुका है,,,

                   (चित्राभार इन्टरनेट)

कैनवास फट चुका है
और रंग सूख चुके हैं
तूलिका विक्षिप्त पड़ी है,,
जब से 'कल्पनाओं' को
उनका जगत 'यथार्थ' में
मिल गया है,,
अब वे खुश हैं अपनी
संकल्पनाओं को मूर्त रूप
में पाकर,
वे अब मोहताज नही रहीं
किसी प्रेम चितेरे दो जोड़ी
हृदयों की 'एहसासी उधारी' की,,

कविताएँ बेरोज़गार हो गई हैं
कलम गर्त खोदने के काम
में लगी हैं,,
क्योंकि कावित्व को उसका
वास्तविक रसातल मिल चुका है,,
वह भी मोहताज नही रहा अब
कवि मन की प्रसव पीड़ा का,,

आस,प्यास,उजास सबने
सन्यास ले लिया है,,
जाओ बाबा! अपने दुनियावी
काम निबटाओ,,
ये बेकार की ख्याली मगजमारी
में हाथ रूक जाते हैं,
कामों के ढेर लग जाते हैं,,
मिलना-मिलाना कुछ नही होता,,
झमेले कम हैं इस जान को?
जो चले आते हो मुँह उठाए,,,,
हुह्ह,,,,,,,कैनवास पर कल्पनाओं
के रंग उकेरने हैं,,,!
कागज़ पर शब्दों का कावित्व
बहाना है,,,,!
जाओ बाबा जाओ,,
काम करो !