गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

मेरी नाव


         ( साभार गूगल)


मैं एक छोटी सी नाव

छोड़ देती हूँ तुम्हारे

 समन्दर के ऊपर

वो भटकती फिरेगी इधर से उधर

हो सकता है कि तुम्हारा समन्दर कोशिश करें कभी

उसे अपनी तेज़ लहरों से दूर फेंक देने की..

हो सकता है कभी 

मेरी नाव 

सूखे सैकत तीरों पर 

झुलसती रहे समन्दरी खारी धूप में...

या भींग कर घनघोर बारिश में

काठ गल कर हो जाए रेज़ा-रेज़ा

पर मुझे विश्वास है

तुम्हारा समन्दर एक दिन ज़रूर

भेजेगा कोई अह्लादित सी लहर

जो खींच ले जाएगी मेरी नाव को

तुम्हारी अतल गहराई की ओर

उस दिन फंसा कर खुद को तुम्हारे

ही किसी मस्ताने भंवर में

मैं नाचती हुई.. घुलती हुई नमकीन पानी में

बन जाऊंगी किसी सीप का मोती,

किसी मछली का घर

या तुम्हारी दुनिया का जलमग्न कोई अवशेष।

- लिली

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