गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

धूप


 

  धूप (भाग-1)

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आसमान कुछ नही कहता,

पेड़ कुछ नही कहते,

तार पर गदराया बैठा पंक्षी युगल भी कुछ नही कहता

सब क्यों चुप हैं ?

यही विश्लेषण करने को मेरी वाचालता भी चुप है।

सुबह चुप रहती है तो धूप के चलने की चाप

सुनाई पड़ती है।

मै सुन पाती हूँ

उसका बालकनी पर उतरना,

पेड़ों की मुंडेर पर पायल छनकाना,

गदराए पंक्षियों का

हल्की गुनगुनाहट पा,जीमना।

दूब के शीर्ष पर पड़े शिशिर बिन्दुओं का सप्तरंगी हो उठना।

सच कुनकुनाता सुख

सुबह की धूप सुनने का

चुप्पी तोड़ने का मन नही करता।

 

 

 

 

धूप (भाग-2)

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कल मैने देखा था

धूप को चलते हुए,

पायल छनकाती फिरती है वो पेड़ों की पात पर!

आज चुपके से कैद कर लिए

उसके पद छाप, तस्वीर में

दिखे?

अरे वो तो रहे...

देखो ठीक से !

हरी पात पर स्वर्णिम चिन्ह,

उसको पता नही था कि- मै आ जाऊँगीं छत पर।

वो रोज़ की तरह एक पात से दूसरी पात पर

फुदकती फिर रही थी,

एक नन्ही बालिका की तरह

उसकी पायल की छनछन संग

संगत बिठा रही थी गौरैया,बुलबुल की चीं चीं..

और नकल उतार रही थी

छत की दीवार पर पूँछ उठाकर इधर उधर टिर्र-टिर्र कर नाचती गिलहरी,

पर वो अलमस्त अपनी ही क्रीड़ा में मग्न

नाचती फिर रही थी

इस पात से उस पात पर

कनकप्रभा की छाप छोड़ती...

देखो मैने कहा था ना,

के मैने सुनी है धूप के चलने की आवाज़!

 

धूप (३)

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ज़रा ज़रा सा छन कर

आ जाया करो

घने जंगलों से

इतनी सी धूप बहुत है

ज़मीन का बदन

सुखाने के लिए


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