(मेरे सुपुत्र प्रीतीश द्वारा रचित)
एक छोटा सा सपना लेकर आए थे वो,
वह नहीं हैं अब,उनकी याद दिलाते हैं जो।
नाक पर उनके रहता था चश्मा,
बातों मे उनकी अजब करिश्मा।
अब क्रिकेट देखने मे क्या मज़ा
उनकी टिप्पणी के बिना,
शिखर हटाओ, धोनी लाओ
छक्का मारो ,मैच बचाओ।
हरदम कुछ थे नया सिखाते,
बात पते की थे सदा बताते।
न भूलूगाँ मै उनको कभी
यादें रूलाए मुझे सभी।
प्रीतिश के दादाजी के आत्मा को प्रभु शान्ति प्रदान करें। बेटा माँ का गुण पा लिया है।
जवाब देंहटाएंप्रीतिश के दादाजी के आत्मा को प्रभु शान्ति प्रदान करें। बेटा माँ का गुण पा लिया है।
जवाब देंहटाएंबस यादें रह जाती हैं जिन्हें संजो कर ज़िन्दगी आगे चलती जाती है। बहुत बढ़िया प्रीतिश।
जवाब देंहटाएंबस यादें रह जाती हैं जिन्हें संजो कर ज़िन्दगी आगे चलती जाती है। बहुत बढ़िया प्रीतिश।
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