(चित्र इंटरनेट की सौजन्य से)
☆☆इश्क की इबादत☆☆
करूँ इश्क़ की बात तो इबादत लगे
ग़मज़दा ख़यालों की शहादत लगे
एहसास उनकी खुश्बू का खिलाये फूल
मशगूल ज़िन्दगी की यह आदत लगे
वह भी बहुत मशरूफ व्यस्त हम भी
ज़िन्दगी लगे खिली जो सोहबत मिले
इतवार की सुबह बिस्तर पर बिछे हुए
ख्यालों में चिपके रहे जो मोहब्बत मिले
रु-ब-रु मिला न स्पर्श किया उनका अभी
कभी जुदा न हों उनसे यह हिदायत मिले
संवर जाती हैं लटें दे रुखसार को लाली
कल रात सो गया जल्दी जो तोहमत मिले
इश्क़ अपना जुगनू सा टिमटिमाता रोशन
बस दुआ मिले यूँ ही दर बदर रहमत मिले
बड़े तकदीर से होती है मोहब्बत भी नसीब
मिले सभी को सही प्यार न जहमत मिले।
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☆☆बंदगी की अलख जगी☆☆☆
डूब गया मैं संग तिहारे सजनी
मनवा बेईमान तुम्हें निहारे सजनी
अंग अंग अगन लगी एक थाप चली
किस गति से तुम्हारे पास पधारूँ सजनी
तुम तलाश हो पलाश हो बस आस हो
एक एहसास हो मधुमास हो बस ख़ास हो
प्रीत विश्वास लिए टिप टिप करे धमनी
कहो क्या आज करूँ अंग साज सजनी
मन मुक्त है तुम उन्मुक्त हो सब व्यक्त
अंग संग नहीं हो तुम कहीं न हो अभिव्यक्त
क्या सोच रही क्या खोज रही ज़िन्दगी
बंदगी की जगी अलख पुकारे मनवा सजनी
चाहत की बंधन हो प्यार भरा क्रंदन
निस दिन बयार मन तुम्हारा करे वंदन
सांस सांस मेरी गुहार करे प्यारी सजनी
तुम ही मेरी भोर खिली मादक सी रजनी।
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☆चाहत भागे बिना लगाम☆
मैं घर में खाली हूँ बैठावह निपटाएं घर का काम
इश्क़ बेचारा बन कर बैठा
चाहत भागे बिना लगाम
सब समझौता से ही चलता
प्यार हो या घर के काम
कामवाली जब आये रोज
फिर भी घंटो करती काम
यही भारतीय नारी है
लिए घर की जिम्मेदारी है
इश्क़ विश्क सब देती समेट
घर के आगे सबको प्रणाम
मैं घर में खाली हूँ बैठा
वह निपटाएं घर का काम
इश्क़ बेचारा बन कर बैठा
चाहत भागे बिना लगाम।
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गौरैया नही बोली
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सुबह कुलबुला उठी
प्रिये कुछ नहीं बोली
सूरज भी निकल आया
पर गौरैया नहीं बोली
सुबह की खामोशी
गहन मौन हिंडोली
बाधित सम्प्रेषण
प्रिये कौन सी पहेली
हर सुबह गुनगुनाती
प्रिये रोज मिले नवेली
आज क्या बात हुई
प्रिये रुकी रही अकेली
अबोला आसमान रहा
धरा की रही ठिठोली
एकतरफा चैट रहा
यह कैसी सुबह हो ली।
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