मंगलवार, 31 जुलाई 2018

चुभती सी कविता

                        (चित्राभार इंटरनेट)

अब कोई शब्द नही मिलते,,
संवाद थम से  गए हैं,,
कोरे पन्नों को ताकती
रहती हूँ,,,
बेबस नज़रों से,,,
तुम्हे लिखने की तलब
बेचैन करती है,,
मेरी ऊँगलियों को,,
पर,,,,,,कैसे लिखूँ,,?
क्या लिखूँ,,,????
अक्सर तुम्हारी बातों
सें कुछ शब्दों की कतरनें
चुनकर रख लेती थी,,,
फिर उनकी दुशाला
सी कविता बुनकर,,,
लपेट लेती थी खुद को,,,
खुश होती थी तुम्हारे,,
एहसासी स्पर्श को पाकर,,,
,,,,,पर,,,,,
अब तो ना संवाद हैं,,
ना शब्दों की कतरने,,,
बस उदासी की
टाट सी खुरदरी कविता है,,
चुभती हुई,,,

~लिली🍃

शनिवार, 14 जुलाई 2018

मोह से बसंत ना लिक्खो जाय

                       (चित्राभार इन्टरनेट)

सखि मोह से बसंत ना लिक्खो जाए!❤

हृदयारण्य की कुंज गलिन में
साजन मिलने आए,,,
बैठ प्रीत की सघन ठौर में
जियरा अकुलाए संकुचाए,,

सखि मोह से बसंत ना लिक्खो जाए!!❤

अति आनंदित अधर गुलाबी
लरजाएं मुस्काएं,
स्पर्श पिया का विद्युत सम
सकल देह लहराए,,

सखि मोह से बसंत ना लिक्खो जाए!❤

मुख से एक भी बोल ना निकले
नयना झरते जाएं,
ना जाने कैसी अनुभूति
सुख सागर गहराए,,

सखि मोह से बसंत ना लिक्खो जाए,,!!❤

गीत मिलन के कोयल गाती
अम्र बौर बौराएं,
एक दूजे में खोई सृष्टि,
ऐसो बसंत ना लौट के जाए,

सखि मोह से बंसत ना लिक्खो जाए!❤

लिली मित्रा🌾

मन का कोना

                      (चित्राभार इंटरनेट)

अंतस जब किसी
दूब की धार से छिल
जाता है,,
,,,,या,,
ओस की शीतल बूँद
से किसी भाग पर
फफोला पड़ा
जाता है,,
कराहती पीड़ा के
अंतरनाद से,,
द्रवित हो जाती हैं,
मुट्ठी में समा जाने
वाले हृदय की
तंग गलियां,,
तब ना आत्मसंगी का
कंधा काम आता है,,
ना किसी आत्मीय चंदन
का लेप शीतलता
पहुँचाता है,,
तब ,,,
बस,,
एकमात्र,,,
 मन के कमरे
का कोई सूनसान सा
कोना याद आता है,,
जिसे पहले अश्रुजल
से धोकर साफ़
किया जाता है,,,
फिर सिकुड़कर,,
समेटकर,,
अपने सख्त घुटनों
पर ,,
उदासीन ठुड्ढी को
टिकाया जाता है,,,
संवेदनाएं अपनी सभी
मनोविकृतियों-प्रवित्तियों
को गले लगा,,
खूब रोती है,,
तब जा कर कहीं,,,,,
दुखते दर्द को
कुछ आराम आता है,,,

अंतस जब किसी
दूब की धार से छिल
जाता है,,
किसी का कंधा नही,,,
 सख्त घुटनों पर
उदासीन ठुड्ढी को टिका,,
दर्द सहलाने के लिए,,
मन का सूनसान
कोना ही साथ
निभाता है,,,,






सोमवार, 9 जुलाई 2018

कप में बची काॅफ़ी

                     (चित्राभार मेरे पतिदेव😃)



टेबल पर काॅफ़ी का कप,,
मेरी तरह चुपचाप सा,,,
पंखें का शोर मेरे अंदर के
मौन सा,,,
सीने के अंदर एक उमस,,,,,,
,,,,बिल्कुल,,,
 इस मौसम के जैसी,,,,,,
जानती हूँ कप के तल में
बची थोड़ी सी काॅफ़ी,,
सूख जाएगी,,
कप भी धुल कर,,
 अपनी जगह पहुँच जाएगा,,,!!
पर मैं???????

मेरा क्या,,,?,????
चुप के शोर में,,
उमसता अंतस,,लिए,,
मै भी कप की बची काॅफ़ी सी,,,
सूख जाऊँगीं,,,
,,,,,और,,,
खुद ही खुद को उठाकर,,
इन जज़्बाती बवंडरों को
समेट,,,
रख दूँगीं धो-धाकर किसी
ताख पर,,,

बुधवार, 4 जुलाई 2018

बचपन

                       (   चित्राभार इंटरनेट)

दिल में अपना बचपन सदा जीवित रखिए,,
उम्र के पड़ाव से परे,,दिल तो बच्चा है जी👶👶👶👶
💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃💃

उम्र के किसी पड़ाव
से, कब बाँधा है बचपन?
दिल के आंगन में,,,
नीम के पेड़ सा पाला
है बचपन,,

सयानेपन की धूप से,
जब जलने लगता
बदन,,
फूँदकतीं गिलहरियों
सा, नीम की छांव में
दुलारा है बचपन,,

ज़िम्मेदारियों के बोझ से
पचक जाता है,मन
बीनने नींबौरियां,यहाँ
दौड़ आता है बचपन,,

उम्र के किसी पड़ाव से
कब बाँधा है बचपन,,
दिल के आंगन में,
नीम के पेड़ सा,,
पाला है बचपन,,

लिली☺