मंगलवार, 31 जुलाई 2018

चुभती सी कविता

                        (चित्राभार इंटरनेट)

अब कोई शब्द नही मिलते,,
संवाद थम से  गए हैं,,
कोरे पन्नों को ताकती
रहती हूँ,,,
बेबस नज़रों से,,,
तुम्हे लिखने की तलब
बेचैन करती है,,
मेरी ऊँगलियों को,,
पर,,,,,,कैसे लिखूँ,,?
क्या लिखूँ,,,????
अक्सर तुम्हारी बातों
सें कुछ शब्दों की कतरनें
चुनकर रख लेती थी,,,
फिर उनकी दुशाला
सी कविता बुनकर,,,
लपेट लेती थी खुद को,,,
खुश होती थी तुम्हारे,,
एहसासी स्पर्श को पाकर,,,
,,,,,पर,,,,,
अब तो ना संवाद हैं,,
ना शब्दों की कतरने,,,
बस उदासी की
टाट सी खुरदरी कविता है,,
चुभती हुई,,,

~लिली🍃

1 टिप्पणी:

  1. एक सन्नाटा
    उदासी नहीं होती
    बल्कि
    एक परिवर्तन है
    एक करवट है
    जिए भी खुलकर
    कहे न सलवट है
    सब बेमानी है
    परिवर्तन जिंदगानी है
    जिए जाने का मजा लें
    सुखद भी आगामी है।

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