शनिवार, 4 अगस्त 2018

मेरा साहित्य

ना जाने क्यों रह-रहकर बैराग सा जागता है,,,तन इस धरा पर विचरता सा पर मन आसमान में बसे उस शून्य की तरफ़ भागता है। घुलती सी लगती है हर तलाश,हर तड़प,हर प्यास,,,,,सब कुछ प्राप्त सबकुछ पूर्णता लिए मुझे ताकता है। लिखने को छटपटाती है ,,,पर वह वेदना भी नही वह हर्ष भी नही,,वह जिज्ञासा भी नही,,वह प्रश्न भी नही,,,, पर कुछ है जो अन्दर भभकता है। ना जाने क्या पकता है,????
      रहस्य के भंवर में खुद को छोड़ दिया निर्बाध,,,!! नही रास आती सांसारिकता में निर्लिप्त मानवीय क्रियाकलाप। कुछ अलग रचना चाहिए,,क्यों ये अपराधों का बखान,,क्यों भ्रष्टाचारों का बयान,,,,तिल-तिलकर मरती-घुटती मानवता की यह नृशंस चीख-पुकार!!!!!!!!
   आहहहहहह!!! निकालना है ! निकलना है!! इन प्रताड़ित वेदना,व्यथा दरिंदगी से रचा साहित्य नही चाहिए!!!
       साहित्य मेरा बहुत सौम्य है!! बहुत सुकोमल है!! जिसका सानिध्य आकुलताओं को अपने सरस स्पर्श से आनंदित करता है,,,मन-मस्तिष्क में सौन्दर्य और सुललित सोच की 'अजंता-एलोरा'',, जी कला-कृतियां बनाता है!!!
      मेरा साहित्य 'शिव' सा योगलीन शान्ति और सत्य का प्रेषक है!!!
   हे कलम के पुरोधाओं!! उस ओर चलो!! शिव सम साहित्य रचो!! समाज को शिवालय बनाओ!! चित्त को ओंकार करो!!!
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लिली 🌷

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