रविवार, 5 अगस्त 2018

शिल्प कोई ना अक्षुण्य होता


भग्न हृदय का भित्त है
खंड-खंड सा चित्त है
शिल्प कोई अक्षुण्य् ना होता
काल चक्र संग खंडहर है होता,,
क्यों विलापें नयन,, हे भोले!
क्यों प्रलापे विक्षिप्त कविता ,,,

सब भस्म करके राख कर दो
मन के जल को आग कर दो
खोल अपना नेत्र तीजा,,
हे प्रभू सब विनाश कर दो!!
फिर लिखू ना कोई छंद रोता
शिल्प कोई ना अक्षुण्य होता

क्यों विलापें नयन ,,हे भोले!!
क्यों प्रलापें विक्षिप्त कविता,,
~लिली🌷
🌷🙏ॐ नमः शिवाय🌷🙏

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