रविवार, 19 अगस्त 2018

नदिया तू शान्त हो जा,,,!

                         
                    (चित्राभार सतीश ,, केरला बाढ़ प्रकोप)

उफनती नदिया  बहाती चली अपने उन्मादी वेग में सब कुछ,,,। रौद्र लहरों में अविवेकी अंधा दिशाहीन प्रवाह है। ना रूप का होश है ना रंग का मलाल। वो जो कभी शांत थी ,,वो जिसके सुर में कलकली निनाद था,,जिसकी लहरें पथरीले पथ में पड़े पत्थरो को भी धोकर चमकाती चलती थीं ,,,जैसे अपना धर्म भूल चुकी है। अपना स्तर लांघ चुकी है,,वह विकराली काली सी घड़घड़ाता अट्टाहास लिए सब बहाती जा रही।
      भयावह है तेरा यह रूप नदिया!!! किस अंतस पीड़ा से धधक उठा है तेरा ज्वालामुखी??? शीतल जल तेरा दहकता लावा बन क्यों धरा पर सब झुलसा रहा??
    अभी हृदय दग्ध है किसी अतीव संत्रासीय व्यथा से ग्रस्त है,,,प्रचंड तेरा प्रवाह है,,लगता नही अभी ये थमेगा,,,!
 पर प्रतीक्षा है तेरे किनारों  को पुनः तेरी सरगमी जलतंरगी लहरों को अपने आगोश में समेट लेने की!!!प्रतीक्षा है,, सूर्य रश्मियों को तेरी लहरों पर बिखर किसी रत्न जड़ित चादर सा चमकने की,,,!! चन्द्रिका मचल रही है अपने प्रिय के आलिंगन में बिध तेरे उज्जलव दर्पण में खुद को निरखने को,,,!!
   प्रतीक्षा है किसी बावरी चंचला को,, निज पायलिया पग पखारती ,,अपने पिय संग नयनाटखेलियां करने की,,!!
नदिया तू लौट आ,,रौद्र को तज,,उतर आ अपने मर्यादित जलस्तर की सीमा में,,,!! तू शान्त हो जा,!! तू स्मित हो जा,,तू सौम्य होजा,,!!


 

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