(चित्राभार इन्टरनेट)
हल्की बारिश हो गई
लगता है मेरी कविता पढ़ ली होगी,
'शुष्क आँसू' हवा के
पतझड़ को खुश्क़ बनाते हैं...
खैर,
धूल ज़मीन की सतह पर बैठी मिली,
पर हवा तब भी बह रही है,
बहुत रोने के बाद
आवाज़ में जैसे हिचकियों सा स्वर है,
सड़क पर टपक रहे बड़े-बड़े पीले पत्तों की
ठप्पप् सी आवाज़ में
ज़मीन की दुनियां पर अनजान पथिक से ये सूखे पत्ते!
किसी वाहन की तेज़ गति के बहाव में
दूर तक लुढ़क कर सरकते
देख कर लगा जैसे...
हरी पात की उम्र में टहनियों से चिपके
दूर से बस इन वाहनों को आते-जाते
देख ही पाते थे
क्या पता इनका मन करता हो इन दौड़ते-भागते
शोरगुल करते वीरान शहरों को
जीवन्त बनाते वाहनों को करीब से देखें
स्कूटर का पीछा करता
एक पीपल का पीला पत्ता
दूर तक गया पर स्कूटर को छू भी ना पाया
और फिर थक कर वहीं पड़ गया, सड़क पर
ऐसे ही ना जाने कितने वाहनों का
पीछा करने के विफल प्रयास करता
किसी के पैरों तले कचर गया
या किसी पहियें के तले मसल गया
तो कुछ पीले पात...उसकी तरह
चंचल प्रवृत्ति के नही थे
सो पेड़ के इर्द-गिर्द ही घास पर
ढेर से इकट्ठे होते गए
किसी म्यूनिसिपलटी के सफ़ाई-कर्मी
द्वारा झाडूं से समेट,आग की आहूति
चढ़ा दिए गए
और इस तरह पत्तों के एक जीवन-काल
का दौर पूर्ण हुआ पतझड़ के रूप में
नई कोपलें तैयार हैं,
एक नए जीवन-क्रम का आगाज़ लिए,
एक नए मौसम के साथ..





