गुरुवार, 7 मार्च 2019

महिला दिवस पर एक महिला की अभिव्यक्ति: अतृप्ता



#अतृप्ता 😊

लिखते-लिखते कभी-कभी अंदर से एक हूंक उठती है की - मैं इस भाव को शब्द नही दे पा रही। काश के, मुझे चित्रकारी करनी आती! काश के मुझे रंगों की भाषा समझ आती! मै कागज़ पर मन की बात लिखने के साथ-साथ हथेली भर के अपने भावों के अनुकूल रंग भर कर कागज पर फैला पाती! वो फैले हुए रंग अपने वृहदत्तम और अपने सूक्ष्मतम् रूप के हर भाव को ,विभिन्न आयामों को परिलक्षित करते हुए मेरी अनुभूतियों का सम्प्रेषण कर पाते।
        तो कभी लगता है स्वर लहरियों की एक छोटी सी तरंग मेरे उर में भी होती जो कंठ की स्वर ग्रन्थियों से निकल मेरे मन के संगीत को सरगम रूप में संप्रेषित कर पाते। ऐसा भी कई बार पाया की कुछ अभिव्यक्तियाँ पाँवों को थिरका कर, अपनी ग्रीवा, नेत्र, भुजा, कटि, को मटका कर भावभंगिमाओं के माध्यम् से स्व अनुभूतियों को प्रेषित कर सकूं।
      कभी कभी लगा कि मैं एकदम शान्त होकर सुनूं...वह सब जो सुन्दर है या असुन्दर है मेरे आसपास... सुन कर उसे नापूं,तौलूं,आंकू। स्वीकार करूं..अस्वीकार करूं.. निहारूं अपलक बिना किसी लज्जा,भय, बाधा के।
      बहुत कुछ अभेद्य है। कितना अपूर्ण पाती हूं खुद को। कोई एक कैसे किसी जीवन में अस्तित्व को पूर्णता प्रदान कर सकता है? अचम्भित होती हूं सोचकर। खुद को अलग कर के जीने का सोचा तो हर पल निर्भरता को तरस उठी। निर्भरता के साथ पोषित करना चाहा तो शोषित महसूस करने लगी। फिर अचानक एक निष्कर्ष खड़ा कर लिया, जीवन की सार्थकता समग्रता को समेटते हुए आत्म की एकाग्रता में ही निहित है। क्या नारी? क्या पुरूष ? जीवन सबके लिए चुनौतीपूर्ण है। अधूरापन हर तरफ़। लगता है फेंक दिया गया है इस भवसागर में। जाओ सीखो तैर कर पार लग जाना या डूब कर तलहटी की रेत बन जाना।
       सम्प्रेषित करने के लिए इतना गहन...कोई एक माध्यम् कैसे चुनूं? बहुत अपूर्ण हूं! बहुत अतृप्त हूं !
लिली😊

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें