( चित्राभार इन्टरनेट)
मेरी कविताओं के कावित्य को समर्पित,,
हे कावित्य!
रहते हो मेरी
कविताओं के साथ
कभी तो पकड़ों
जीवन पथ पर भी
मेरा हाथ,,,,,,,,,,,,,
शब्दों और भावों से
आओ निकल कर बाहर,
जिन सड़कों पर तुम्हे
सोच कई बार मुस्कुराती,
कई बार नयन छलकाती
चलती हूँ,, चलो ना कभी
पकड़ कर मेरा हाथ,,,
हे कावित्य!
रहते हो मेरी
कविताओं के साथ
कभी तो पकड़ो
जीवनपथ पर भी
मेरा हाथ,,,,
क्यों तुम मेरी कल्पनाओं
में रचते हो?
एक मौन से
परन्तु नित नए काव्य
गढ़ते हो?
ख्यालों की रसोई में
पकवानों से पकते हो,
खटकते पटकते बरतनों
में किसी 'राग' से बजते हो,
कभी आओ ना पास,
तुम्हे भी खिलाऊँ
अपने हाथों से पके
भोजन के ग्रास,,
कहो तुम भी नयनों
में भर अह्लादित नेहपाश
मेरी प्रिये सम नही कोई
दूजे का साथ
हे कावित्य!
कभी तो बैठो
मेरे साथ,,,,
क्यों तुम्हे नित नए
उपमानों से सजाऊँ?
गीतों में ढालूँ और दुनिया
को सुनाऊँ?
क्यों तुम्हे एकान्त में समेटूँ
और भीड़ से छुपाऊँ?
तुम क्यों नही मेरे यथार्थ
का धरातल बनते?
तुम में 'बोए' मेरे सपनों
के अंकुर पनपते,
मैं इन पौध की एक
बगिया सजाती,
बढ़ती फलती
शाखाओं को तुम संग
देख तुममें सिमट जाती
'शाम' सीढ़ियां चढ़ती
तुम्हारी आहटों पर,
धड़कनों का होता साथ
हे कावित्य!
कभी तो बैठो
मेरे साथ,,,
जीवन पथ पर
पकड़ो मेरा भी हाथ,,
लिली😊
अस्मिता हमेशा अपने आकाश की तलाश करती है। मन अनेकों रंग में डूब जब भावनाओं के ताल पर नृत्य करने लगता है तब इस प्रकार की रचना प्रकट होती है। इस प्रकार के मनमौजी भाव प्रत्येक स्वस्थ मन के व्यक्ति में उत्पन्न होता है पर इन भावों को शब्दों में इतनी खूबसूरती से बांध पाने का कौशल लिली जी जैसे रचनाकार में होता है। मनमौजी मन के तेज प्रवाह में भागते भावों और कल्पनाओं को सुंदर शब्दों और महकती पंक्तियों में जिस लेखन ऊर्जा से पिरोया गया है उसके लिए लिली जी की मुक्त कंठ से प्रशंसा।
जवाब देंहटाएं