गुरुवार, 9 नवंबर 2017

कुछ तार सुरों के बहके हैं,,,

                       (चित्राभार इन्टरनेट)

कुछ तार सुरों के     बहके हैं,
मतवारे     पंछी      चहके हैं।
दिनमान में भी अब दीप जले,
रात में अब  दिनकर   चमके।

मन  सुन्दरवन  सा  घना घना
लिपटा भावों से हर तरू तना
वनजीवों सी चंचल अभिलाषा
नही निर्धारित कोई इनका बासा
सब अपनी ही  धुन में लहके हैं
कुछ तार सुरों    के  बहके   हैं
मतवारे    पंछी      चहके     हैं।

मन चाहे बस सब लिखती जाऊँ,
कभी कवँल कुमुदिनी बन जाऊँ।
फिर रूप   अनोखा लिए खिलूँ,
मंडराते भ्रमरदलों के हृदय हरूँ।
नव पल्लव झनझन खनके   हैं,
कुछ तार   सुरों के    बहके   हैं,
मतवारे      पंछी      चहके   हैं।

उन्माद उमड़   उर धड़क  रहा,
दमित दावानल अब भड़क रहा।
घनघोर घटा भी झमझम बरसी,
भरती नदियां भी प्यासी  तरसी।
काव्यकोष  भर   छलके      हैं,
कुछ तार सुरों    के बहके     हैं,
मतवारे  पंछी        चहके    हैं।

मन क्या कहने को व्याकुल है,
बंधेपाश खुलने को  आतुर हैं।
गगन भी अब उड़ता दिखता,
चन्द्र नही अब सीधा  टिकता।
सब बीच  अधर में  लटके हैं,
कुछ तार     सुरों के बहके हैं,
मतवारे    पंछी     चहके   हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. काव्य की कसौटी पर खरी उतरती कविता। इस कविता में गीत भी है, लय भी है,ताल भी है जिससे मन इस कविता को पढ़ता नहीं गुनगुनाता है। निःसंदेह यह एक नाजुक भाव लिए सुंदर गीत है।

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  2. स्वच्छंद होने की जिज्ञासा और पिपासा
    स्वयम् को व्यक्त करने की अभिलाषा
    उन्मुक्त भाव से सरित प्रवाह सी भाषा
    अद्भुत सी लेखनी में शारदा का बासा

    बहुत सुंदर प्रस्तुति

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