शुक्रवार, 10 मई 2019

पिय तुम्हरी अंजुरी में भर जाऊं



मन भटके, या
हो बोझिल,,
प्रीत हिया की
तब हो झिलमिल
पिय तुम्हरी अंजुरी में
भर जाऊं
सब तज मोह जाल
इह जग का
स्नेहिल थपकी पा
सो जाऊं

हो तृप्त आत्म का हर
स्नायु
अतृप्त लगे यह
लम्बी आयु
किल्लोल करे तेरे
संग का स्पंदन
सांस सांस जैसे
हो चंदन,

तृष्णा साजन से
मिलने की,
ले अंतस में ही
गोता खाऊं
प्रेम मणिक से
कर खुद को प्रज्जवलित
जनम जनम
तेरी हो जाऊं

प्रीत हिया की
जब हो झिलमिल
पिय तुम्हरी अंजुरी
में भर जाऊ,,

लिली😊

1 टिप्पणी:

  1. अंजुरी में डूबकर प्रेम के गोते लगाना प्यार की सूक्ष्म और गहनतम अभिव्यक्ति है। अंजुरी का प्रयोग स्वयं की जल तृष्णा के लिए किया जाता है, सूर्य को जल चढ़ाने के लिए किया जाता है, चरणामृत ग्रहण करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार अंजुरी की अनेक उपयोगिताएं हैं और अंजुरी निजतम दैहिक पात्र भी है। कविता आरंभ से ही अपनी धुन और मस्ती में डूबी हुई है और प्यार की बेखुदी में एहसासों को जस का तस उकेरती जाती है। भाव, शब्द और अभिव्यक्ति जब खूब सम्मिश्र हो जाते हैं तो अर्थ के कई क्षितिज निर्मित करते हैं जो इस कविता के संग भी है। शब्द दर शब्द गहन भावों में आत्मिक अनुराग की रंगीन बदलियों की खूबसूरत छटा निर्मित किए हैं। स्थिर जल में गिरनेवाली बूंद की अनेक वलय की भांति अंजुरी में भी अभिलाषाओं के अनेक वलय अभिसार के असंख्य जुगनुओं की दीप्ति लिए हुए है। अंजुरी से काव्य प्रीत की धार संभाल भी रही और बहा भी रही। डूबा - डूबा कर भिंगा - भिंगा कर सशक्त अभिव्यक्ति की अर्थोत्पादक पुल निर्मित करती हुई रचना।

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