बुधवार, 1 मई 2019

नारी हूं,,,,,घर सजाती हूं

             


नारी हूं
घर सजाती हूं
सारा संसार सजाती हूं
सजा कर रखना मेरी प्रकृति है
अस्त-व्यस्त कमरे,अलमारियां
टेबल,ऑफिस,फाइलें
घर-बाहर
सब व्यवस्थित कर सकती हूं

किसी भी जगह की
शांत सौम्य सुसज्जा मेरी मौजूदगी
का प्रमाण होती है,,

सीमित साधनों में
असीमित आशाओं का पूरण
करना मेरा गुण है
सबकी नज़रों से छुपा कर
रक्खी मेरी 'चोर-गुल्लक'
मेरी मितव्ययता का प्रतीक है
खाली जेब को बाहर निकाल
सिर पकड़ के माथे की
बल पड़ी पेशानियों को छुपाते
हाथों पर
हमेशा मैने उम्मीद की खनक
इन्ही 'चोर-गुल्लकों' से निकाल
कर रखी है,,,
भले ही 'बहुत ख़र्चीली' कह कर
हास-परिहास का विषय बनती रही हूं,,

बच्चे अक्सर कहते हैं
-"माँ तुम घर पर नही रहती तो खाने का मन नही करता,
पर तुम्हे देखते ही हमेशा भूख लगती है"
सुखद है ये अनुभूति
मै भूख को भी वात्सल्य से पकाती हूं,,,

जो मिलेगा मुझे मै सब
सजा दूगीं,,,
व्यथा,अवहेलना,उपेक्षा,दुत्कार सबकुछ
और इतने व्यवस्थित रूप में संवारूगीं,
के देखने वाले सोचेगें ,,,,,,,
अरे वाह! अद्भुत!
पीड़ा,वेदना,अवहेलना,उपेक्षा ,तिरस्कार भी
इतने सौन्दर्यपूर्ण होते हैं!!

सुनिए! ये मैं आपको सुना नही रही,
ये सब मैं खुद से कहती हूं,,
मैं स्वयं से सिंचिंत
मै स्वयं से चालित
मैं स्वयं से ऊर्जित होती हूं,,,
बस इसीलिए हर बात जैसी भी हो
बस कह कर हल्की हो लेती हूं😊

लिली मित्रा💁‍♀️

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