बुधवार, 8 मई 2019

सड़कें



                      

सड़कें


चित परिचित सी सड़कें,
वही राहें,वही ख्याल
बस वक्त बदला..
ये 'बस वक्त का बदलना'
इतना सरल भी नही था,
एक कठिन सफ़र तय हुआ था
खुद का खुद तक...
परिवर्तन हुआ 
सड़कें गवाह रही हैं।
ये बहुत अच्छी श्रोता हैं,
तब भी सुनती थीं मेरे मौन संवाद
आज भी सुनती हैं,
कंकरीटों की फाँकों और
तारकोल की तहों में
सहेज कर रख रखी थीं उन्होने
मेरी नितान्त अपनी बातें..
स्कूटर के पहियों नें
उन फाँकों को कुरेदकर..
और खोजा
मैं बस कौतूहल लिए
अपने सफर के पन्ने
पलटती रही,
कुछ भींगे थे,कुछ खिलखिलाते से थे
कुछ सिहरे से थे..आज भी मौजूद
उसी ताज़गी के साथ,
शायद मैं उन्हें कहीं दर्ज ना कर पाऊं,
आज लगा वो बहुत सुरक्षित हैं
कंकरीटों की फाँको में।
वर्तमान को जीना है
और जिए वर्तमान को
इन सड़कों की..
कंकरीटों की...फाँकों और
तारकोल की तहों में
सहेजते जाना है।
क्योंकि भविष्य में जब
वक्त और बदल जाए,
खाटी शुष्क यथार्थ को
वर्तमान मान जीना पड़ जाए
तब..
अपने इतिहास की भीगी
नितांत अपनी बातों को
 पुनः जी सकूँ,
बदलते वक्त के साथ
नए वर्तमान को आत्मसात
करने का नया सफ़र
इन्ही सड़कों संग तलब कर सकूँ

लिली😊

1 टिप्पणी:

  1. वाह, भावनाओं को सड़क से जोड़ कर स्कूटर के पहिए सी गतिमानता असाधारण कल्पना। स्कूटर के गतिमान पहिये का सड़क से संपर्क अटूट संपर्क का द्योतक। सड़क पर टिका स्कूटर।सड़क में समाहित संवेदनाएं। रचना ने कोलतार की सड़क हो या सीमेंट की एक नया प्रतीक दिया है। यथार्थ में जीवन एक सड़क है,स्कूटर का पहिया गतिशीलता, महत्वाकांक्षाएं और व्यक्ति यह रचना। लेखन का सुखद कौशल।

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