(चित्राभार इन्टरनेट)
अब प्रेम मत खोजना
क्योकि वो अब 'परिपक्व' हो चुका है
और 'परिपक्वता'
प्रर्दशनलोलुप नही होती,,
'प्रेम' शब्द के 'ढाई' में
जो 'आधा-अधूरा' सा है
वह वहीं है,,,
अब प्रेमाकुल हृदय को
प्रेमरंजित प्रत्येक अनुभूति को
एकान्त में घूंट-घूंट
गटकना प्रिय हो चला है,,
वो गटकन का स्वर, कंठ से निकल
दोनो कानों तक टंकार लगाता
हृदय प्रशान्त में
घुल जाता है,,,,,
इस असीम परमान्द
की अमृतानुभूति
की,,,,,मैं अब प्रदर्शनी लगाने की
इच्छुक तनिक भी नही हूं,,,,
इसलिए,,,,
सुनो हे!
मेरी कविताओं में अब 'प्रेम' मत खोजना,,,
वो परिपक्व हो चुका है अब
लिली🌷
क्योकि वो अब 'परिपक्व' हो चुका है
और 'परिपक्वता'
प्रर्दशनलोलुप नही होती,,
'प्रेम' शब्द के 'ढाई' में
जो 'आधा-अधूरा' सा है
वह वहीं है,,,
अब प्रेमाकुल हृदय को
प्रेमरंजित प्रत्येक अनुभूति को
एकान्त में घूंट-घूंट
गटकना प्रिय हो चला है,,
वो गटकन का स्वर, कंठ से निकल
दोनो कानों तक टंकार लगाता
हृदय प्रशान्त में
घुल जाता है,,,,,
इस असीम परमान्द
की अमृतानुभूति
की,,,,,मैं अब प्रदर्शनी लगाने की
इच्छुक तनिक भी नही हूं,,,,
इसलिए,,,,
सुनो हे!
मेरी कविताओं में अब 'प्रेम' मत खोजना,,,
वो परिपक्व हो चुका है अब
लिली🌷
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