सोमवार, 11 सितंबर 2023

बगावत


 

 बगावत

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 अलग बहना चाहे

नदी की कोई एक लहर,

कोई बूँद छिटक कर सागर से

फिर से बन जाना चाहे बादल,

जिस डगर जाते हों

हवा के झोंके झूमते

कोई एक झोंका तोड़ कर खुद को

चुपचाप निकल जाए,

किसी ख़ामोश से

जंगल के झुरमुटों तरफ ...

कभी ऐसा होना सम्भव हो सके तो बताना मुझे भी,

मै भी एक टुकड़ा तोड़कर खुद से

उस नदी की लहर,

उस सागर की बूँद

और

उस हवा के बागी झोके संग

भेज देना चाहती हूँ।

बगावत की सुगबुगाहट को

कुचलने का अब जी नही करता।

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