रविवार, 17 सितंबर 2023

नदी और गुलाब






नदी और गुलाब

--------------‐------

उसने एक गुलाब दिया

बंद पंखुड़ियों को

खोलते भँवर दिखाए

और कहा- ये नदी सा गुलाब है

जो तुम्हारे अंदर बहती है

करती है आमंत्रित इन भँवरों

में डूब जाने को,

रंगत सुर्ख लाल है इसकी

ग्रहण के बाद के चाँद सी..

अब नदी उछल रही है

पत्थरों पर लहरों की

अंगड़ाइयां चटखाती

किल्लोलती....

अपने मैदानों को भीगोती

अपने पहाड़ों पर रीझती

 

मैंने कहा-रुक जाओ! बस करो!

गुलाब के इन

भंवरों पर और उंगलियां मत फेरो।

इतना साध नही पाएगी नदी

झर जाएगीं पंखुड़ियां गुलाब की भी
 



 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें