रविवार, 17 सितंबर 2023

कोई बात ना हो फिर भी


गीत


कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती  हो
मैं नज़रे उठा कर कहूं
तुम मुस्का के सुनते हो

खामोश किनारों पर
लहरें भी चुप सी हों
बन लहरों सी छू जाऊं
तुम तट से गीले रहो

कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो

कहने सुनने को अब
कुछ भी ना रहा बाकी
मैं आँचल सा सागर हूं
बन सूरज ढल जाओ

कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो

जब बूंदों ने छूकर
लहरों को तृप्त किया
मैं नीरव मौजे हूं
तुम इन पर लहराओ

कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो
मैं नज़र उठा के कहूं
तुम मुस्का के सुनते रहो


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