कोई बात ना हो फिर भी
गीतकोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो
मैं नज़रे उठा कर कहूं
तुम मुस्का के सुनते हो
खामोश किनारों पर
लहरें भी चुप सी हों
बन लहरों सी छू जाऊं
तुम तट से गीले रहो
कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो
कहने सुनने को अब
कुछ भी ना रहा बाकी
मैं आँचल सा सागर हूं
बन सूरज ढल जाओ
कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो
जब बूंदों ने छूकर
लहरों को तृप्त किया
मैं नीरव मौजे हूं
तुम इन पर लहराओ
कोई बात ना हो फिर भी
कोई बात निकलती हो
मैं नज़र उठा के कहूं
तुम मुस्का के सुनते रहो
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