मंगलवार, 11 जुलाई 2017

बरसो मेरे सजन

(चित्र आभार इन्टरनेट)



सजन रहे बरस
घन रहे तरस
सघन जल सरस
घन रहे तरस,,,

सजन रहे महक
धरा रही दहक
मन रहो बहक
धरा रही दहक

सजन रहे कड़क
विद्युत रही भड़क
प्रेम अगन फड़क
विद्युत रही भड़क

सजन हरे-भरे
विटप तके जरे
उमंग तरे-तरे
विटप तके जरे

सजन रहे चुहुँक
पवन गई हुड़ुक
प्रिये रही कुहुक
पवन रही हुड़ुक

श्रावन बने सजन
बने घन मगन
तरे झरे उमंग
बने घन मगन


बरसो मेरे सजन
भीगूँ मैं मगन
प्रीत करे लगन
भीगूँ मै मगन

सोमवार, 10 जुलाई 2017

और जीवनचक्र चलता रहा,,

   (जिमकार्बेट की एक शबनमी सुबह की याद दिलाता यह चित्र मेरे द्वारा)


रवि के जाने और शशि के आने के बाद,कवि मन जागता है,शशि खिड़की से झांकता है,कवि कल्पनाओं को नापता है,और निशा दोनो को ताकती है। कवि और शशि के नापने और झांकने मे निशा ढलती गई,,वह शाम से रात,और रात से भोर की ओर बढ़ती गई। ना कवि ने सुध ली , ना शशि ने बात की।वह निपट अकेली अपने ही अंधकार की स्याही मे खोती गई,,वह रोती रही, सुबकती गई।
   उधर शशि अपनी ज्योत्सना छिटकाता रहा,कवि की कल्पना को भड़काता रहा। एक अमराई सी वह कागज़ पर संवरती रही कवि की प्यास को तरती रही।
      अब शशि की ज्योत्सना भी ढलने लगी, कवि की कल्पना भी थकने लगी। थके हुए दोनो एक दूजे पर निढाल हो कर लुढ़क गए।शशि और ज्योत्सना भी धीरे धीरे सिमट गए। निशा भी सुबकते हुए सो गई। दूब के तकिए को शबनम से भीगो गई। फिर पता नही कब भोर हो गई। रवि की नवल नर्म रश्मियां अब आसमान पर बिखरने लगीं। कवि आंख मलने लगा और शशि की छवि धूमिल पड़ने लगी। दूब पर पड़ी शबनम मोतियों सी चमकने लगी। प्रातः का संगीत सुन नए गीत रचने लगीं।
    हवा के मंद झोंकों ने उन आंसुओं को सुखा दिया। चूम कर निशा के मस्तक को उसे रवि ने सुला दिया। यही सिलसिला रोज़ चलता रहा । कवि बदलता रहा, शशि अपनी कलाओं के साथ कभी दिखता कभी छुपता रहा। नही बदली तो बस निशा,, नही बदला तो बस रवि,,,,,,,,,,,,,,,,

रविवार, 9 जुलाई 2017

पल्लवी के प्यार मे😃😃

                             घटा सी लटा
                             मनमोहिनी अदा
                             सजन हैं फिदा
                             रूप यूँ खिला
                             बंसन्ती छटा




ये हैं हमारी
सखी पल्लवी
अली जी की
बगिया की कली

कहीं हमसे
छिंड़को कुछ
हमपर भी
काव्यमयी लड़ी

लिखने लगी थी
मिश्री की डली
कलम छिटककर
परे गिरी😜

कह सखी कैसे
रचूँ कोमल कविता
तू तो मिर्ची सी
तीखी बड़ी😃😃

दिल की है साफ
कहे कड़क बात
नही सहती ये
किसी की बकवास


झांसी की रानी
डराए खड़ी😜
बिगड़ गई
तो आफत बड़ी

खैर मना लिली
पल्लो के सामने
नही तू पड़ी
कर देती तेरी
खटिया खड़ी

जानेमन जानेमन
तू अपने आप मे
एक अनोखी लड़ी,
प्यारी बड़ी !!😘😘

सस्नेह लिली☺

शनिवार, 8 जुलाई 2017

अंतरद्वंद

(चित्र इन्टरनेट से)


                       

मौन कौन?
मै या मन,,?
मै कौन?
यदि मै मन नही
तो मन कौन?

खाली भौन
मे चित्कार
करे मौन
गूंजे पुकार
कहता कौन?
मै या मन?

जिह्वा शांत
अन्तर अशांत
विचलित प्रश्न
सुनता कौन?
मै या मन?

स्वयं से तर्क
स्वयं से वितर्क
जूझे निष्कर्ष
क्लांत कौन ?
मै या मन?

खोजे तट
लहरें विकट
द्वंद प्रकट
निकाले कौन?
मै या मन?

अन्तरद्वंद
चल रहा विषम
प्रतीक्षारत
अंत करे कौन?
मै या मन?
**********


जन्मदिन मुबारक हो नीतू😊

                     ओवन मे बेक होकर ऑरेंज केक होगई
                       तुम्हारे जज़्बात स्पाॅन्जी
                       लज़्जत से भरी हर बात होगई!!


बताऊँ मै आपको मेरे हिसाब से दुनिया तीन तरह की होती है- 1 मेरी दुनिया, 2- आपकी दुनिया, 3- ऑनलाइन दुनिया । मेरी दुनिया और आपकी दुनिया तो आप और मेरे  समझने की चीज़ है,, पर ऑनलाइन दुनिया वह दुनिया है जहाँ मै और आप जुड़ जाते हैं। इस जुड़ाव को नकारा नही जा सकता क्योंकि ये कहीं ना कहीं मेरी और आपकी दुनिया का एक अहम हिस्सा बन जाते हैं। कुछ नए रिश्ते बनते हैं कुछ टूट जाते हैं। कुछ ऐसे ही अहम रिश्तों की बात लिखने का मन कर रहा है, आज। यूँ तो बहुत सारे प्यारे दोस्त दिए हैं इस ऑनलाइन दुनिया ने,, पर आज मै "ऑरेन्ज केक' सी फ्लेवरफुल 'नीतू' की बात करूँगी, जिसे हमारी 'चटर-पटर गैंग' प्यार से 'नीट्स' बुलाते हैं।
     आज हमारी 'नीट्स' का "हैप्पी बर्थ डे टू यू है"😃😃 जन्मदिन की शुभकामनाएँ 'नीट्स'!!!!!
   जीवन हमेशा तुम्हे 'फवाद खान' सा 'हैन्डसम'❤ दिखे,,मुझे पता है यह लाइन पढ़कर तुम्हारे मुँह से हायययययय फवाद बस एक बार मिल जाओ निकलेगा 😃😃😃😃😃 तो भगवान से प्रार्थना है कि 'ज़ारून' उर्फ 'फवाद' तुमसे ज़रूर मिलने आए !!!
      जीवन तुम्हारे लिए 'महेन्दर सिंह धोनी' जैसा मुस्कुराता हुआ बने!! धोनी के शाॅट्स, धोनी की विकिट कीपिंग, धोनी का सौम्य स्वभाव और उसकी सभी खूबियां जो तुम्हे पसंद हैं...तुम्हारा जीवन तुम्हे वैसा ही दिखे। जीवन एक क्रिकेट मैच सा हो तुम्हारे लिए, जिसके शुरू होने से पहले तुम एक छोटे बच्चे के जैसे उत्साह और कौतूहल से बेसब्री से अपने 'शेट्टी जी' के साथ टी वी के सामने बैठकर उसका लुफ्त उठाओ।
फेसबुक पर अपने मज़ेदार स्टेट्स डालो- " और करो धोनी का कैच मिस"... 😃😃😃 इंडिया मैच हार जाए तो नीट्स के दुख से पूरा फेसबुक आंसू की तरह बहे, इंडिया अगर जीत जाए तो पूरा फेसबुक खुशी से झूम उठे।
       तुम हर एक पल को अपने 'शेट्टी जी' के साथ पूरी तरह जियो,। कभी रात मे आइसक्रीम खाने चली जाओ, तो कभी कोई स्वीट डिश खाने चली जाओ।
      सेल्फी का ज़माना तो अभी आया है...पर हमारी नीट्स ने का अपने आप को खुश रखने के लिए,अपनी सुन्दर फोटोज़ अपलोड करने का ज़माना बहुत पुराना है। शायद 'सेल्फी अपलोड' करने का फैशन तुमसे ही सीखा है सोशल मीडिया ने। ये तुम्हारी ज़िन्दादिली की एक पहचान है। जितनी खूबसूरती से तुम अपने हर भाव को सेल्फी के जरिए पेश करती हो...यह भी एक हुनर है।
     तो हमारी 'स्टाइलिश सेल्फी क्वीन नीट्स' तुम्हारे लिए जीवन एक सेल्फी की तरह हो,जिससे तुम अपने हर 'मूड' हर भाव को अपने हिसाब से पेश कर सको उसे जी सको, चाहे वो 'ईद वाली सेल्फी' हो या 'बारिश मे भींगने' वाली...।
    तमाम परेशानियों,उतार-चढ़ाव,कुछ कहे कुछ अनकहे दुखों को दिल मे समेटे जीवन के हर पल को कैसे जीते हैं यह 'नीट्स' से सीखना चाहिए।
     आज तुम्हारे जन्मदिन पर मेरी तरफ से तुम्हारे लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएं!!!  शेट्टी जी, रितु, मयंक, नोनू सिंह,सुनील जी, फवाद, धोनी,सेल्फी,जगजीत सिंह जी की गज़ल..,सबसे अहम तुम्हारे मम्मी और पापा के आशिर्वाद के  अलावा  तुम्हारे ढेर सारे दोस्तों से तुम्हारी जीवन की बगिया हमेशा खिली ,रहे महकती रहे,सजी रहे…
इसी कामना के साथ
लिली 😊

सोमवार, 3 जुलाई 2017

परिवर्तन,,

                          (चित्र संभार इन्टरनेट)

मेरी प्रथम लघुकथा,,"परिवर्तन" ,,,एक शुरूवात, एक प्रयास,,,,

कभी कभी कैसे बुलबुले उठते हैं मन मे,,कुछ बड़े तो कुछ छोटे,,,जैसे मन मे कुछ खौल रहा हो,,तमाम तरह के वैचारिक बुलबुल उभरते और फटते हुए। कहीं पढ़ रही थी कि मनुष्य चाहे जितना भी व्यस्त क्यों ना हो एक निश्चित समय उसे खुद के साथ बिताना चाहिए,,, अच्छा लगता है खुद मे डूबना। अपनी ही कही और की गई क्रियाओं का अवलोकन करना। अपनी अदालत मे जज भी मै और अभियुक्त भी मै,और वकील भी मै,,।  
    अक्सर खो जाया करती थी नीलिमा ऐसी अदालतों की न्यायिक कार्यवाहियों में। बहुत अंदर तक गोता मारना पड़ता था,क्योंकी न्यायालय के सभी किरदार उसे ही निभाने पड़ते थे, निष्पक्ष न्याय की अपेक्षा सभी किरदारों को होती थी।
     रोज़ एक नया मुक्दमा । आज का केस था ,, आकाश का कल रात नियमानुसार बात करके ना सोना। अक्सर दोनो मोबाइल पर सोने से पहले कुछ बातें करते और फिर 'गुडनाइट' कह कर सोने की तैयारी।
     हलांकि दोनो की प्रेम कहानी के शुरूवाती दौर मे ये बाते अंतहीन और समय सीमा से परे होती थीं। चूँकि अब एक लम्बा अरसा तय कर चुका है इन दोनों का प्रेम, अब वह उन्मादीपन नही है।एक दूजे के लिए तड़प अभी भी उतनी ही है, परन्तु एक दूजे की परिस्थियों और जीवन की प्राथमिकताओं की समझ अब परिपक्व होने लगी है। हालात्  मजबूर भी बना देते हैं और इंसान को धीरे धीरे परिपक्व भी। नीलिमा के मन मे जिरह चालू है। आइए अब आज के मुक्दमे की पैरवी शुरू करते हैं।
       इतवार था कल ,झमझमाती बारिश थी,, मतलब ये कि मौका भी और मौसम भी। आकाश और नीलिमा ने एक लम्बे अरसे बाद इस इतवारी सुबह को भरपूर जिया। 
   दोनो अलग अलग शहरों मे रहते हैं। दोनो के बीच सम्पर्क का एक मात्र साधन 'मोबाइल'। क्या अद्भुत आविष्कार है मानव मस्तिष्क का!! कभी दूरियों का पाट देता है,तो कभी दूरियां बना देता है यह अद्भुत यंत्र।
     खैर दोनो की सारी दुनिया इन्ही दो लम्हों की बातों पर चलती थी।ईश्वर की कृपा दृष्टि ही थी जो कल मौके मिलते गए और आत्मिक संतुष्टिदायक बातें दोनों के बीच होती रही सुबह के अलावा भी। 
      पर आदत तो आदत है,,असमय जितना भी मिल जाए,,परन्तु अपने निर्धारित समय पर खुराक़ ना मिले तो तड़प और बेचैनी उत्पन्न होने लगती है। और मामला प्रेम का हो,,,,फिर तो कुछ कहने ही नही।।
       आदतन रात साढ़े नौ बजे तक नीलिमा ने आकाश को मैसेज भेज दिया- "जानेमन डिनर हो गया?"
और हर दो तीन मिनट के बाद उत्तर की जाँच करती रही।
फिर खुद डिनर की तैयारी मे जुट गई। तब तक आकाश का कोई जवाब नही आया था।
  एक घंटे बाद नीलिमा ने यह सोचते हुए या यूँ कहिए खुद को समझाते हुए फिर मैसेज भेजा - सो गए क्या?
'गुडनाइट',,! और अपनी अदालत खोलकर बैठ गई जिरह,सबूत,बयांन ,,,,आज सुबह अच्छी बात हुई,,शाम को भी तो कितनी सुखद और सन्तुष्टिदायक वार्तालाप हुआ,,, चलो कोई नही जो अभी हमारी 'निर्धारित शुभरात्रि' चैट नही हुई।
        इतना सब समझने समझाने के बावजूद भी मन नही मान रहा था,,,बार बार आकाश के रिप्लाई की अपेक्षा मे फोन पर हाथ चला ही जाता था। आकाश का मैसेज आया,,देखते ही चेहरा खिल उठा कि दो बातें कर के सो जाएगी वह ,सुबह उठना था जल्दी।
      जवाब था,, 
"ओ सजनी
सताए रजनी
रवि भर मदमस्त
आ जा कामिनी"

 हाँ डिनर हो गया प्रिये।
"मेरा प्यार"
"गुडनाइट"।
 पुरूष कितने सरल और संतोषी होते हैं,,,कभी प्रेम कर के देखिए यह तथ्य स्पष्ट हो जाएगा । 
    जवाब देखते ही नीलिमा ने एक सांस मे कई मैसेज भेज डाले

" थे कहाँ?
 बिना बतियाए जा रहे हैं सोने।
 बता कर जाइए कहाँ थे?
 सुनिए,,
 सुनिए,,
 देखिएगा मत,,
 दिल दुखा कर गए,,,।"

परन्तु कोई जवाब पलट कर नही आया,,फोन भी किया पर व्यर्थ क्योंकि महाशय 10 मिनट के अंदर ही निद्रादेवी की आगोश मे जा चुके थे।
नीलिमा रात एक बजे तक इधर-उधर करती रही फिर ना जाने कब उसकी भी आंख लग गई।

      "ओह, सो गया था। तुम गुडनाइट कर दी थी इसलिए"
आकाश के  गुडमार्निंग के साथ यह जवाब आया रात के मैसेजों का,,,। 
    बस फिर क्या था,,,एक तरफ नारी मन का गहन मंथन और उससे उपजे तरह-तरह के गम्भीर निर्णय,,और दूजी तरफ सहज-सरल और संतोषी पुरूष मन,,तीक्ष्ण हृदयभेदी प्रहारों को झेलता हुआ। 
     एक छोटी सी गलती कैसे जीवन दर्शन तक का चिन्तन करवा देती है यह विचारणीय एंव दर्शनीय है,,, और यदि आपने प्रेम किया है तब तो ऐसे 'दार्शनिक तर्क-वितर्क" आए दिन झेलने पड़ सकते हैं।

    नीलिमा ने खुद का आत्ममंथन इतनी देर मे कर लिया था। उसके मन की अदालती जिरह बाज़ी ने यह परिणाम निकाले थे-"कभी कभार बिना टाइम बात लम्बी कर लूँ तो मन मान ले की होगया कोटा पूरा अब अपना काम कर नीलिमा" 

   बिचारे आकाश ने अपने बचाव मे भोली सी दलील रखी-" "देखी न एक दिन तुम्हारे goodnight के कारण गफलत हो गयी तो कैसे पटखनी दे रही हो मुझे।"
 पर कहाँ नीलिमा की अदालत अंतिम निर्णय ले चुकी थी,,, "अब से गुडनाइट और गुडमार्निंग बंद,, कोई बंधन नही
 सब उन्मुक्त आत्मा की तरह"।

आकाश की कोमल गुहार- "उफ़्फ़,,,!! इतनी नाराज़गी
 मेरी तो सोचो कुछ क्या बीतेगी,,?
उन्मुक्त तुम्हारे बिना ?
बावली"

नीलिमा- "नाराज़ नही हूँ,, उतार रही हूँ सब"।
आकाश- "दोनों आत्मा एक।
 अलग की बात कितनी निरर्थक
 समझो हम हैं"। 

नीलिमा-"वही तो समझ रही हूँ,,अब कहाँ पहले जैसे करती हूँ
 फोन नही आता था तब कितना आफत करती थी,,।"
आकाश-"संयुक्त भी नहीं,एक ही आत्मा दो शरीर में स्पंदनों को संचालित कर रही हैं। हमारे बीच तेरा-मेरा की कोई संभावना नहीं।"

नीलिमा- "बस यही फिलोसफी उतार रही हूँ
पर आपकी स्थिति तक आने मे थोड़ा और समय लगेगा"।
  
     आकाश-"यह बताओ हमारी बातें कब बंद रहती हैं? कौन सा पल है जिसमें हम एक दूजे से पल भर को अलग हों। बता दो ज़रा?"
नीलिमा-" कभी नही,,होता"
 हमेशा ख्यालों मे रहते हैं,हवा के भांति।"
आकाश-"तो यह फोन कहां से आ गया??
 सही बोली। हवा की तरह"
नीलिमा-"वही तो बोल रही हूँ, फिर फोन आए ना आए कोई फरक ही नही पड़ेगा, पर उस स्थिति तक आने मे मुझे समय लगेगा,,,। उसी की तैयारी चल रही।"

आकाश-"पर फिर भी फोन जरूरी है। आवाज से स्पंदनों से छूटे भाव सुनने को मिलते हैं।"

नीलिमा- "एक बार आपका फोन खराब हुआ था ,,आपसे दो दिन कोई बात नही हो पाई थी,,कैसी हालत हो गई थी,,पर अब वैसा नहीं करना"।(एक पुरानी घटना का संदर्भ देते हुए)

आकाश-"फोन को नकारा नहीं जा सकती है। सम्पूर्ण सम्प्रेषण हो सके ऐसी कोई अभिव्यक्ति नहीं है। इसलिए अभिव्यक्ति के कई साधनों का उपयोग लाजिमी है।"

 नीलिमा-( कटाक्ष मारते हुए)" यह अभिव्यक्ति भी एहसासों मे हो जाएगी।"

आकाश- "एक दिन फोन न आए तो शाम तक हालात बिगड़ जाएंगे। अब तो और बुरी हालत होगी। दो दिन तो प्राण ले लेगा।
 अभी  मैन कि फोन करूं?"
नीलिमा- " नही अभी नही बात करनी" मुँह फुलाते हुए जवाब दी।
आकाश -" फिलॉसॉफी की ऐसी की तैसी"।

नीलिमा -"ना , ऐसी की तैसी क्यों,,,?यह अपनानी बहुत ज़रूरी है
 वरना जीवन काटना भारी"।

आकाश- "आज फोटो की मांग नहीं की? (यह भी एक नियम था रोज़ तैयार होकर आकाश अपनी फोटो नीलिमा को भेजता था, और नीलिमा सारा दिन उस फोटो को जाने कितनी बार निहारती थी,,बातें करती थी, आकाश के चेहरे के भावों को पढती रहती थी)
दो शब्दों का खींजा सा जवाब नीलिमा का-"आपने भेजी नही"।
आकाश-"तो पूछ तो सकती थी कि क्यों न भेजी ?
 कितनी दूर करती जा रही हो मुझे,,।
 जैसे कोई अजनबी हूँ,,।
 इत्तफाक से मिल गया था,,।"
  उफ्फ एक छोटी सी चूक के घातक परिणाम झेलता आकाश,,,। एक तो उमस भरा मौसम ,पसीने से खस्ता हाल,,उस पर प्रेमिका के बिगड़े मिजाज़ की गर्म हवाएं,,, ऐसा दंड,,,,,! राम बचाएं ,,,!!

'मियां की जूती मियां के सर' को सिद्ध करता उत्तर दिया  नीलिमा ने -"सोचा आप व्यस्त होंगें।"

मौसम और माशूका के वार को सहता हुए आकाश बोला- "देखो देखो दुनियावालों
मेरी प्रिये बदल रही"।

माशूका से जीतना इतना आसान नही,, दनदनाता हुआ उत्तर  आया-"आपमे ढल रही हूँ।"

सीमा पर तैनात जवान के भांति हर वार को वीरता के साथ झेलता आकाश,,,,, बोला-"तर्क हर गलती को छुपा लेता है।
 ढल रही,,
शानदार जवाब,वाह!!
 ये मारी।"
दार्शनिकता के समन्दर मे डूबती नीलिमा का निर्णायक जवाब -" आप को दुविधा मे नही डालना कि,,जीवन की प्राथमिकताएं  देखूँ या नीलिमा??
 प्राथमिकता पर ध्यान दें आप।"


आकाश- "प्राथमिकताएं तो चल ही रही हैं, नीलिमा तो मेरी सांस है। 
उसे देखना नहीं उसे तो जिये जा रहा हूँ।
 प्राथमिकता तुम "

नीलिमा के अंदर का वकील मुक्दमे पर अपनी पकड़ बनाता हुआ- "गलत "
आकाश- "क्या गलत। दूर कर रही हो,?"
 नीलिमा-"प्राथमिकताएं विवश करती हैं
मै आपको विवश नही करना चाहती।"

आकाश थोड़ी दृढ़ता के साथ - "विवशता कभी कभी आती है। रोज नहीं"।
नीलिमा -"एकदम भी नाराज़गी नही है।
 बस यह सब बोल देती हूँ तो अपने आप को एक पायदान चढ़ा हुआ पाती हूँ।"
 अपने आप को अब ना ढीगाऊँगीं
 हे प्रियतम तुम रहो कर्मशील कर्तव्यपथ
पर ,मै बाधा बन ना मार्ग अवरोध लगाऊँगीं,, से भाव नीलिमा के मन मे उफान मारने लगे थे ।

आकाश- पूरी चेष्टा के साथ बात को सम्भालने मे लग गया,,, "छोड़ दो फिर कटी पतंग की तरह। यह विवश करना क्या है?
 थोड़ी ज़िद न हो तो मोहब्बत बेरंग हो जाती है।
 तुम्हारे प्यार के पंजे से लटका मैं आसमानों का विचरण कर रहा और तुम विवशता की बात कर रही।"

नीलिमा-"एकदिन आपको  लगेगा की नीलिमा सब समझ जाएगी।"

आकाश-"क्या समझ जाएगी
 बोलो??"

नीलिमा-"कभी किसी कारण बात ना हो पाई,,तो इस तरह की बातें कर के आपको परेशान नही करेगी।
 वह यह समझ जाएगी अवश्य ही कोई कारण रहा होगा।
 अभी भी समझ आता है
 पर समझ कर भी ना समझ बन जाती हूँ।"

आकाश-"अपनी स्वाभाविकता को मत बदलो
 जैसी हो वैसी ही रहो। बेहद प्यारी लगती हो।"

नीलिमा-"पर मुझे खुद को बुरा लगता है, सब समझते हुए भी ऐसे तर्क-वितर्क कर समय नष्ट करती हूँ।"

आकाश-" तो क्या हुआ। हर बात प्यारी और अच्छी हो यह भी तो संभव नहीं।
 सहजता में ही मजा है।
कोई परिवर्तन नहीं।"

नीलिमा-"जो है वह जाएगा थोड़े ही,,,
 मात्रा कम बेशी हो सकती है बस।"

बात का रूख बदलते हुए आकाश ने शरारत भरा प्रश्न पूछा-"
"हमारा बच्चा कब होगा,,,?"
नीलिमा - (मूड मे कोई परिवर्तन नही)
"हो गया,,"
आकाश चौंकते हुए- "कब,??????"
 
नीलिमा- "परिवर्तन नाम रखा है बच्चे का,,,।"
"चलती हूँ नाश्ता बनाना है।
शुभदिन"
आकाश के लिए जवाब की कोई गुन्जाइश ना रखते हुए नीलिमा ने मुक्दमे का फैसला सुना दिया।

आए दिन ऐसे मामले दोनों की अदालत मे आते रहते हैं। निर्णय लिए जाते हैं,,,और दूसरे ही पल,,पुनः एक दूसरे के प्रति उनकी अकुलाहट फिर बांवरी होने लगती है।

********समाप्त*******

शनिवार, 1 जुलाई 2017

आज रंगने का मन कर रहा है,,

                        (चित्र इन्टरनेट से)

रंग को देखकर अक्सर मन उन्मादी हो उठता है,,और कुछ ऐसे एहसास उभर आते हैं,,,,
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

आज लिखने का नही,
रंगने का मन कर रहा है।

किसी कोरे कैनवास पर,
रंगों को उड़ेलने का
मन कर रहा है।

हर रंग मे डूबों दूँ
अपनी पूरी हथेलियां,
उन्ही हथेलियों को
कैनवास पर सहलाने का
मन कर रहा है।

कौन सा रंग उठाऊँ पहले?
यह सोच कर नही,,,
बेसुध हो उनकी
चिकनाहट महसूस करने का
मन कर रहा है।

आंखें रंगों की रौनक
मे डूबती रहें,
मुझे बस इस रंगत से
खुद को रंगने का
मन कर रहा है।

रंग उड़ाने का मन
कर रहा है,
रंगों से भिगाने का
मन कर रहा है,,
काश मिला होता
तस्वीर बनाने का हुनर,,
आज मेरे महबूब को कैनवास पर
उतारने का मन कर रहा है।

फिर छूकर तेरी तस्वीर को
उसे हक़ीकत बना देती,
जी भर के चश्म-ए-क़रार को
जीने का मन कर रहा है।

हर तरफ रंग हों,
हर आरज़ू रंग हो,
एहसास रंग हों,
मै भी सतरंगी बन जाऊँ
खुद को ऐसा रंगने का
मन कर रहा है।

लिली मित्रा
#मेरीअभिव्यक्तियों से