शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

प्रेम




जो कहता है प्रेम त्याग का नाम है
प्रेम अधिकार नही चाहता,
प्रेम दूर रहकर भी खिला रहता है
प्रेम जलता दरिया है
प्रेम बहती नदिया है
प्रेम शून्य है
तो बता दूं आपको-
प्रेम जब अपनी गहनतम्
गहराइयों में पहुँच,
अपने प्रियतम् को छुपाता है,
उस गहराई में जाकर कोई
दुनियावी कर्तव्य अपना आधिपत्य
जमाने का प्रयास करता है,
तब प्रेम 'त्याग' की परिभाषा भूल जाता है,
तन से लेकर मन के रोम-रोम में
बसा कर रुधिर कणिकाओं का अंश
बने प्रेम ,पर कोई अन्य अपना वर्चस्व
जमाना चाहता है तब-
 प्रेम में 'अधिकार' का स्वर प्रचंड नाद
सा चिल्लाता है,
भौगोलिक दूरियों की सीमाएं एक हद
के बाद सह पाना दूभर हो जाता है,
एक अंतराल के बाद सुकोमल भावों
के पुष्प सा 'प्रेम'
किसी विषैले चोटिल विषधर सा
बौखला उठता है
और एक स्नेहिल स्पर्श की अनुभूति
पाने के लिए..
अंधाधुंध फुंफकारता..विष वर्षा करने पर आमादा हो जाता है,
अहसासों का शीतल जल
आग का दरिया
और
शून्य का वृहद किसी बूंद सा...
सिमट जाता है आँखों के पोरो पर
इसलिए निवेदन है
उदारवाद का पैराहन जबरन
बिचारे प्रेम की मूक अभिव्यक्तियों को मत पहनाओ
चरम के उत्कर्ष पर प्रेम बहुत उग्र है।


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