शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

झूठे ख़्वाब,,

                     (चित्राभार इंटरनेट)

 

देखूं तुम्हे छूकर
करीब से 'झूठे-ख़्वाबों',,,,
पलकों पर सजा देते हो
झिलमिलाते अनगिनत
सितारों के मखमली अहसासी-शामियाने,,,
जिनकी क्षणिक चकाचौंध से,,,
भरमा जाता है यह 'मूढमन',,
भूल कर चिमिलाती धूप
जीवन की,,,
झूम जाता है लोलुप मनगगन,,
और फिर दिखाते हो तुम अपना
असली रंग,,,
अपने करीब होने का देकर
भरकस भरम,,,लुप्त हो जाते हो
अगले ही क्षण,,,,
बिलखती आशाएं और विक्षुप्त आत्म
छूकर,पलकों को
तुम्हे बार-बार खोजती हैं
व्याकुल अंगुलियां,,,
शायद मिल जाओ पलकों की
कोरों पर छुपे ,,,
पर तुम नही मिलते,,,जा चुके होते हो किसी की
संवेदनाओं को छल कर,,,,
मै देखना चाहती हूं तुम्हे छूकर ,,
तुम्हारे छद्म हृदय को छूकर,,,
कोई प्रतिक्रियाएं उठती हैं
तुम्हारे हृदय में?
या अंतस तुम्हारा पाषण है,,,?
लिली😊

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