रविवार, 24 फ़रवरी 2019

आना कभी,,,

                    (चित्राभार इंटरनेट)

आना कभी फ़ुरसत निकालकर,,
बैठेगें मन के बागान में,,
कुर्सिंयां डाल कर,
किसी पेड़ को दिखते हुए,,
कहुंगीं मैं,,,,
देखो ये वही पौध है
हमारे प्यार कि ,,
जिसे दिया था तुमने भेंट स्वरूप,,
पा चुका है पेड़ का रूप
अब शरद की सुबह
देखा करती हूं इसपर झड़ते-खिलते शिउली के फूल,,
तुम विस्मय से देख
जोड़ो कुछ और धुमिल सी यादें,,,
पुष्पित हो उठे बिन मौसम शिउली,,
झर जाए दो मन लहरा के,,,
आना कभी फुरसत निकालकर,,
बैठेगें मन के बागान में
कुर्सियां डाल कर,,,


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