(चित्र इन्टरनेट की सौजन्य से)
'कथक' नृत्य के तीन मूल शब्द 'तथई' ,,,,'त'-अर्थात 'तन' , -थ'अर्थात- 'थल', 'ई' -अर्थात 'ईश्वर' ,,,चरम आनंद के स्रोत को व्यक्त करता है। 'तथई' अर्थात "इस नश्वर शरीर द्वारा ,,इस थल पर मै जो भी करूँ वह उस परमपिता को समर्पित हो" का गूढ़ भाव लिए हुए है।
मै यहाँ किसी विशिष्ट नृत्य शैली का वर्णन नही करना चाहती, वरन् अपनी अनुभूतियों को शब्दों के 'घुघरूँ' बाँधकर नृत्य के प्रति मेरे अनुराग की ताल पर अभिव्यक्ति का नृत्य प्रस्तुत करना चाहती हूँ।
'नृत्य' आन्तरिक आनंद की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है। तबले की थाप पर जब घुँघरूओं की झनकार ताल देती है,,,,एक ऊर्जा का संचार होता है,,,, नख से शिख तक तरंगित आनंद को अनुभव किया जा सकता है। संगीत की धुन पर थिरकते पैर एक असीम उल्लास,ऊर्जा,एवम् अद्भुत अलौकिक सुखानुभूति कराते हैं।
नृत्य मात्र आनंद अनुभूति या अभिव्यक्ति का साधन नही,,,,बल्कि यह 'मन',' मस्तिष्क' एवम् शरीर के विभिन्न अंगों मे पारस्परिक तालमेल कराता है। शरीर रूपी संस्था मे एक अनुशासन की व्यवस्था भी करता है। एक निश्चित 'लय', 'ताल' और समय मे अनुबद्ध अंगों का संचालन करते हुए, भावाभिव्यक्ति करता अनुशासित शरीर जब नृत्य करता है,,,,तब उसके अंग-प्रत्यंग से सौन्दर्य प्रस्फुटित होने लगता है। जो नर्तक और दर्शक दोनो को मंत्रमुग्घ कर एक अलौकिक सुख देता है।
गीत, वाद्य और नृत्य परस्पर ऐसे जुड़े हैं कि एक के बिना दूजे की कल्पना नही की जा सकती,अतः तीनों के सही तालमेल से उत्पन्न संगीत की तरंगे वातावरण मे लहराने लगें,,,, और पैर ना थिरके,,,,,,क्या ऐसी कल्पना आप कर सकते हैं?????? मैं तो कदाचित नही कर सकती,,,!!
नृत्य एक आराधना है हमारे अन्तरमन मे छिपे ईश्वरीय अंश को खोज निकलने का,,,,एक मार्ग है स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करने का,,,।
ईश्वरीय आराधना की यह नृत्यमयी मेरी यात्रा अवश्य मुझे अन्तरमन के ईश्वरीय अंश से एकीकार करवाएगी,,,, यही आशा लिए मन नाच उठा,,,,, ' तथई थेई तत्' ,,,,।
'कथक' नृत्य के तीन मूल शब्द 'तथई' ,,,,'त'-अर्थात 'तन' , -थ'अर्थात- 'थल', 'ई' -अर्थात 'ईश्वर' ,,,चरम आनंद के स्रोत को व्यक्त करता है। 'तथई' अर्थात "इस नश्वर शरीर द्वारा ,,इस थल पर मै जो भी करूँ वह उस परमपिता को समर्पित हो" का गूढ़ भाव लिए हुए है।
मै यहाँ किसी विशिष्ट नृत्य शैली का वर्णन नही करना चाहती, वरन् अपनी अनुभूतियों को शब्दों के 'घुघरूँ' बाँधकर नृत्य के प्रति मेरे अनुराग की ताल पर अभिव्यक्ति का नृत्य प्रस्तुत करना चाहती हूँ।
'नृत्य' आन्तरिक आनंद की अभिव्यक्ति का सर्वोत्तम साधन है। तबले की थाप पर जब घुँघरूओं की झनकार ताल देती है,,,,एक ऊर्जा का संचार होता है,,,, नख से शिख तक तरंगित आनंद को अनुभव किया जा सकता है। संगीत की धुन पर थिरकते पैर एक असीम उल्लास,ऊर्जा,एवम् अद्भुत अलौकिक सुखानुभूति कराते हैं।
नृत्य मात्र आनंद अनुभूति या अभिव्यक्ति का साधन नही,,,,बल्कि यह 'मन',' मस्तिष्क' एवम् शरीर के विभिन्न अंगों मे पारस्परिक तालमेल कराता है। शरीर रूपी संस्था मे एक अनुशासन की व्यवस्था भी करता है। एक निश्चित 'लय', 'ताल' और समय मे अनुबद्ध अंगों का संचालन करते हुए, भावाभिव्यक्ति करता अनुशासित शरीर जब नृत्य करता है,,,,तब उसके अंग-प्रत्यंग से सौन्दर्य प्रस्फुटित होने लगता है। जो नर्तक और दर्शक दोनो को मंत्रमुग्घ कर एक अलौकिक सुख देता है।
गीत, वाद्य और नृत्य परस्पर ऐसे जुड़े हैं कि एक के बिना दूजे की कल्पना नही की जा सकती,अतः तीनों के सही तालमेल से उत्पन्न संगीत की तरंगे वातावरण मे लहराने लगें,,,, और पैर ना थिरके,,,,,,क्या ऐसी कल्पना आप कर सकते हैं?????? मैं तो कदाचित नही कर सकती,,,!!
नृत्य एक आराधना है हमारे अन्तरमन मे छिपे ईश्वरीय अंश को खोज निकलने का,,,,एक मार्ग है स्वयं को ईश्वर के प्रति समर्पित करने का,,,।
ईश्वरीय आराधना की यह नृत्यमयी मेरी यात्रा अवश्य मुझे अन्तरमन के ईश्वरीय अंश से एकीकार करवाएगी,,,, यही आशा लिए मन नाच उठा,,,,, ' तथई थेई तत्' ,,,,।
Ati uttam behan
जवाब देंहटाएंAti uttam behan
जवाब देंहटाएंWaah se upar shbd nhi Mila is bhaavbhini vandna k liye.. Tatthai thei tat... Ka varnan is prakar se milega..ishwar k itne kareeb Jane k liye... Kbi nhi socha tha...
जवाब देंहटाएंDhnywaad Lily ji
Bahut khoob likha hai.... fan ho gaye hum to
जवाब देंहटाएंBahut khoob likha hai.... fan ho gaye hum to
जवाब देंहटाएंनृत्यमयी ईश्वरी आराधना के उक्त लेख में शब्दों के घुँघरू मन को आह्लादित कर देनेवाले ताल पर बज रहे हैं। यह नृत्य तो प्रत्येक व्यक्ति करता है। सुरमयी ताल पर हर मनुष्य का मन थिरकता है परंतु बहुत कम लोग ताल, वाद्य और नृत्य के अलौकिक प्रभाव की अनुभूतियों से गुजर पाते हैं। कोई भी कला जब मनोयोग और सम्पूर्ण प्रतिबद्धता व् समर्पण से किया जाता है तो उसमें ईश्वरीय अनुगूंज निर्मित हो जाती है। इस प्रकार की अनुभूतियों से आपका नृत्य गुजर रहा है जो आपके आत्मिक उत्थान का द्योतक है। अपनी इस विशिष्ट अनुभूतियों को घुँघरू की ध्वनि में पिरोकर थोड़ा और विस्तार देती तो मुझ जैसे पाठक भी पारलौकिक अनुभूति से स्वयं को गुजरता हुआ अनुभव करते। मन की गहनतम अनुभूतियों को इतनी सफलतापूर्वक शब्दों में प्रस्तुत करना सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंtaathaiiiii tathhhhhh :)
जवाब देंहटाएंitney sunder aur spasht shabd jou dil se antaraatmaa tak jaaein woh sirf tum ey likh sakti ho lily... sahi kaha ki naachna sirf ek kala ey nahi ek atarbhooti bhi h jiski kalpana matra se ey mann tript ho jaata h :)
जवाब देंहटाएंtathaaa thaiiii taa thaa thaiiiii