(चित्राभार इन्टरनेट)
हयात-ए-ग़ज़ल जब उठा की पी,
थोड़ी छलकी,तो थोड़ी बचा के पी।
मापनी की नापनी भी आज़मा के देखी,
मज़ा आया बहुत जब,सब हटा के पी।
काफ़िर सी फ़ितरत,फ़कीरी अदाएं
ये निखरी बहुत जब,सब लुटा के पी।
महफ़िल की रौनक ,ना बने,,ना सही,
करार आया जब, बत्तियां बुझा के पी।
नही फिक्र हो मुक्कमल हर शे'र इसका,
सनम तेरा नाम लेकर,बस लहरा के पी ।
~लिली🌿
हयात-ए-ग़ज़ल जब उठा की पी,
थोड़ी छलकी,तो थोड़ी बचा के पी।
मापनी की नापनी भी आज़मा के देखी,
मज़ा आया बहुत जब,सब हटा के पी।
काफ़िर सी फ़ितरत,फ़कीरी अदाएं
ये निखरी बहुत जब,सब लुटा के पी।
महफ़िल की रौनक ,ना बने,,ना सही,
करार आया जब, बत्तियां बुझा के पी।
नही फिक्र हो मुक्कमल हर शे'र इसका,
सनम तेरा नाम लेकर,बस लहरा के पी ।
~लिली🌿
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