बुधवार, 11 अप्रैल 2018

मेरी निराशाओं के प्रिय अंधेरे,,,

मन के आकाश
की ये अंधेरी रातें ,,,,
प्यार होने लगा है,,,
,इनसे एकबार फिर,,,

कितना उदार होता है
इनका हृदय,,,,
ये छुपा लेती हैं
मेरी पीड़ा,मेरी खुशी,
मेरा विरोध,मेरा समर्पण,

मेरी जीत,मेरी हार,,
मेरे कुलुष,,मेरे विकार,,
मेरा क्रोध,,मेरी पुचकार

मेरी आशा,मेरी हताशा,
मेरी जिजिवषा,मेरी कर्मनाशा,

मेरे समग्र व्यक्तित्व को
ओढ़ाकर अपनी,
स्याह चादर,,,,
ले जाता है मुझे,,
प्रकाश की हर उस सूक्ष्म किरण से
परे,,,
जो मुझे मेरी हार के स्मृति-चिन्हों
की झलक दिखलाते हैं,,,

मेरी निराशा के ये अंधेरे,,
मेरे रीते हाथों के खाली से घेरे,,
जाओ !!!!! ले जाओ
इन आशाओं की
टिमटिमाती डिबरियां,,,

मेरी महत्वाकाक्षांओं की
प्रतिमा बहुत विशाल है,,
इस लुकभुकाती सी लौ में,,
पूरी दिखाई नही देगी,,,,
जाओ ले जाओ,,,,,!!!!

आज मेरा,,'मैं',,जागा है,,,,
यह गौरी सा शान्त नही,,,
चंडी सा प्रलयकारी है,,,,
इसकी प्रचंडता को
तिनके की ढाल से
रोकने का प्रयास ना करो,,,,
जाओ,,,!!!

मुझे खुद में जलने दो,,,
बहुत छला है स्वयं को,,
छल के उस छद्म को,,,
मुझे इस मोटी अंधेरी
चादर से ढकने दो,,,

शीतलता मिलती है मुझे इस अंधकार से,,,
हल्के से  प्रकाश की ऊष्मा भी अब सह्य नही,,,
मुझे रहने दो मेरे अंधेरों में,,
यही मेरे सच्चे साथी,,,,

हे मेरे आशाओं के प्रकाश!!!
अभी तुम मेरे करीब ना आओ,,,




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