गुरुवार, 10 अगस्त 2017

सुनो सजन,,,,!

                        (चित्राभार इन्टरनेट)
 सुनो सजन!
दिखाओ ना
ज़रा नयनों
का दर्पण,,
माथे पे बिंदिया
है लगानी,,
फिर आढूं
मै चुनर धानी।

सुनो सजन!
दिखाओ ना
ज़रा नयनों
का दर्पण,,
आंखों मे कजरा
है लगाना,,
फिर नयन
है तोहसे लड़ाना।

सुनो सजन!
दिखाओ ना
ज़रा नयनों
का दर्पण,,
जूड़े मे गजरा
है सजाना,,
फिर इतरा
के लिपट जाना।

सुनो सजन!
दिखाओ ना
ज़रा नयनों
का दर्पण,,
नयन से नयना
है मिलाना,,
फिर लजा
के नज़रे झुकाना।

सुनो सजन!
हटा दो घर के
सारे दर्पण,,
निखरूँ मै
इन नयनों में झांक,
बोला ना है
कैसा तुम्हारी
प्रीत में अर्पण ?

1 टिप्पणी:

  1. सजन के नयनों का दर्पण
    प्रीत का मोहक समर्पण
    रीत रागिनी कामिनी मंदाकिनी
    स्वामिनी चितेरी पर मूक अर्पण।

    एक सुंदर और मीठी रचना।

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