मंगलवार, 8 अगस्त 2017

खुशबू क्यों अदृश्यमान है,,,,,,



उसको कहाँ खोजूँ जो मन मे समाया है,,
फूल तो दिखता है पर खूशबू कहाँ दिखती है,,
और हठ खूशबू को देखने की है,,,
महसूस तो बहुत कर चुकी,,,,
अब आप कहेंगें फूल जीव और खूशबू ईश के समान है,,
एक शरीर और दूजा प्राण है,,
नसिका ले रही गंध और इन्द्रियां
हो रही सम्मोहन से निष्प्राण हैं,,
पलके मुंद रही और मुख पर
आनंद की मुस्कान है,,,,,
सब सुख लेकर भी आंखों
को वही प्रश्न किए परेशान है,,
अनुभूतियों में जो दिख रहा
उसकी प्रकटता क्यों अदृश्यमान है,?
जानकर भी बन रहा मन अन्जान है,,
पुष्प तो दिख रहा खूशबू क्यों अदृश्यमान है,,,,,,,,,,?

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