शनिवार, 19 अगस्त 2017

मन को क्यूँ गौरैया बना डाला,,,,

                       (चित्राभार इन्टरनेट से)

मन को क्यों तूने गौरैया बना डाला,,
बनाया भी अगर तो उसकी मुंडेर से
खुद को क्यों परचा डाला,,,?

रोज़ जाता है उड़ कर तेरी खिड़की
पर लिए एक आस ,,,,,,,,,,
कुछ प्यार भरे दानों और चाहत
की लिए प्यास ,,,,,,,,
चल पागल! उड़ जा हो जा फुर्रररररररर
अभी घर है भरा कौन देखे तुझे
चल हट,,हो जा दुर्ररररररररररर,,,
तूने तो इस खिड़की पर अपना
घोंसला ही बना डाला,,,

मन को क्यों तूने,,,,,,,,,,,,,

बावली सी चिड़िया,,तेरा बावला सा मन
फुदक रही सुबह से लिए
 एक प्यार भरी तड़पन,,,,
झिड़कियों पर भी ना उड़ती,अंदर रही झांक
दिख जाएं कहीं मालिक शायद खुली
हो कोई फांक,,,,
जा देख कहीं और बिखरा हो कोई दाना
यही बोल गए शायद अब भूल के ना आना
इस दर को तूने ठीकाना ही बना डाला,,

मन को क्यों तूने,,,,,,,,

चली थी बड़ा खुद की अहमियत परखने
झूठी सी तल्खियों से पंख फटकने
अब मटक रही सूनी मुंडेर पर
इधर-उधर,,,,
जा अभी घर है भरा नही तेरी कोई
करेगा तेरी फिकर,,,
जब मन हो अकेला तब ही वो गौरैया
बुलाएं, कई कई बार तुझे अह्लाद
से सहलाएं,,,
तूने तो उसे अपना अधिकार ही
समझ डाला,,,

मन को क्यूँ तूने,,,,,,,

लिली😊

2 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. गौरैया के द्वारा अंतर्मन को एक कथा क्रम के द्वारा सुंदर ढंग से पिरोने के लिए जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कठिन भावों को सरल शब्दों में बांध पाना लेखन की कुशलता है।

    जवाब देंहटाएं