(चित्राभार इन्टरनेट)
दौड़ मैया के करे गलबइयां,
सरस बोल रिझाएं कन्हैंया।
लपट झपट पुचकार रहे,
नटखटी चाल बूझें हैं मइयां।
मइया सो माखन ना बनावे कोई,
स्वाद दूजा मन को ना भावै कोई।
कान्हा के मन की सब समझ रहीं,
बालक के प्रेम मे जसोदा सुध खोईं।
कैसो वात्सल्य माखन मे मथ रही,
तिरछे नयन से सब सुख निरख रही।
बड़ो दुलारो मोरा लल्ला। कन्हैया,
मन ही मन सोच मइयां हरस रही।
लल्ला की मिठी बतियन पे हार गई,
भर स्नेह से अपार गोद में बिठाय लई।
देखो सजल नयन से माखन चटाय रही,
कान्हा के रसीली बतियन पे वारी भई।
दौड़ मैया के करे गलबइयां,
सरस बोल रिझाएं कन्हैंया।
लपट झपट पुचकार रहे,
नटखटी चाल बूझें हैं मइयां।
मइया सो माखन ना बनावे कोई,
स्वाद दूजा मन को ना भावै कोई।
कान्हा के मन की सब समझ रहीं,
बालक के प्रेम मे जसोदा सुध खोईं।
कैसो वात्सल्य माखन मे मथ रही,
तिरछे नयन से सब सुख निरख रही।
बड़ो दुलारो मोरा लल्ला। कन्हैया,
मन ही मन सोच मइयां हरस रही।
लल्ला की मिठी बतियन पे हार गई,
भर स्नेह से अपार गोद में बिठाय लई।
देखो सजल नयन से माखन चटाय रही,
कान्हा के रसीली बतियन पे वारी भई।
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