शनिवार, 26 अगस्त 2017

भक्ति के मापदंड क्या,,,,,,?

                      (चित्राभार इन्टरनेट से)

मंदिरों के बाहर पड़े भगवान को चढ़ाए पूजा पुष्प,,,जिनको भक्तगण आंख बंद कर कचर के चले जातेहैं,,।पूरी श्रृद्धा के साथ भगवान की प्रतिमा के मुहँ में ठूंसा हुआ मिष्वान्न ,,, मतलब जब तक भक्त द्वारा चिपकाई गई बरफी प्रभु-प्रतिमा के मुहँ से चिपक ना जाए,,,भक्त को संतुष्टि नही होती। बाद में वही मिठाई का टुकड़ा ज़मीन पर गिर जाता है और लोग उसी पर पैर रख कर बेखबर हो चले जाते हैं,,,। यह सब मैं कई सालों से देखती आ रही हूँ। मन में हमेशा यह प्रश्न आता है,,,,,, क्या भक्तों की भक्ति बस अपनी पूजनथाल का प्रसाद या पूजा समाग्री भगवान को अर्पण करने तक ही सीमित होती है,????
       शिव रात्रि के दिन,,भगवान के श्री लिंग पर चढ़ाया जाने वाला दूध,,,निकासी की उचित व्यवस्था ना होने के कारण कई छोटे मंदिरों में,,रास्ते पर बह कर आता रहता है,,,,भक्त भक्ति में तल्लीन इन्ही पर पैर धर मंदिर में प्रवेश करते रहते हैं।
     इसे उनकी किमकर्तव्यविमूढ़ता भी कहा जा सकता है। अक्सर पूजा के बाद भगवान पर चढ़े फूल-फल को विसर्जित करने की यथोचित व्यवस्था ना होने के कारण मंदिर के बाहर ही फेंक दियें जाते हैं,,,फिर उस पर कुत्ते-बिल्ली जो चाहे मुँह लगाए, कोई फर्क नही पड़ता,,,भक्त अपनी भक्ति जता कर जा चुके होते हैं।
     आज अपने बेटे को ट्यूशन छोड़कर आ रही थी,,,तो किसी के घर के सदस्य बड़ी श्रृद्धा-भक्ति के साथ गणपति प्रतिमा को विसर्जन हेतु ले जा रहे थे। विसर्जन प्रायः हमारे निवास स्थान के पीछे, बायपास सड़क के समानान्तर बनी  नहर में किया जाता है। यह नहर कहीं-कहीं शहर का कचड़ा डालने का एक कचड़ाखाना सा बन गई है। लोग अक्सर बेबाक हो हर प्रकार का अवशिष्ट विसर्जन कर चले जाते हैं।
     मेरे बेटे ने मुझसे प्रश्न किया-" माँ ये गणपति जी की प्रतिमा को उसी नहर में विर्सजित करने ले जा रहे हैं,,,जहाँ हर प्रकार का अवशिष्ट बहाया जाता है??? यह तो बहुत ही गलत है!!!!! मै निरुत्तर थी,,,!!!!
     क्यों नही था मेरे पास जवाब एक बालक के पूछे गए तर्कसंगत प्रश्न का,,,??????
     उत्सवों के महीने शुरू होने वाले हैं,,,। अभी गणपति उत्सव की धूम है,, फिर दुर्गा-पूजा,,और भी कई ऐसे सार्वजनिन पूजोत्सव एक के बाद एक आने वाले हैं। मै भी दुर्गा-पूजा के समय पूरे उत्साह और श्रृद्धा के साथ पूजा पंडालों में जा माँ दुर्गा को पूजा एंव पुष्पांजली अर्पित करती हूँ। पांच दिनों तक पूजा बेदी की पवित्रता का सम्मान हर कोई करता है।
      पूजा के उपरांत मैं ही नही,,अन्य बहुत से श्रृद्धालू पुरोहित से देवी माँ के पूजा-घट से पूजा-पुष्प माँ के आशिर्वाद स्वरूप मांगते हैं। मैं अक्सर इन पुष्पों को अलमारी के कागज़ के नीचे दबा देती हूँ। इससे यह अनुमान लगा सकते हैं कि घट पर चढ़े माँ को अर्पित यह बेलपत्र एंव पुष्प देवी माँ का साक्षात् आशीर्वाद समतुल्य होता है।
     परन्तु एकबार पूजाबेदी से देवी की प्रतिमा जाने के बाद पूजा स्थल से विसर्जन स्थल तक कितने ही प्रतिमा पर पड़े पुष्प ,बेलपत्र यत्र-तत्र गिरते रहते हैं,,,। उनका क्या,,,,,?
       जितने दिन प्रतिमाओं की पूजा होती है,,,तब तक  पवित्रता को आदर दिया जाता है,,,।,पूजन,,विसर्जन के बाद,,अक्सर नदी किनारे प्रतिमाओं के बहाए अंश पड़े मिलते हैं,,,तब तक वह अपनी पवित्रता और दैवत्व सब खो चुके होते हैं भक्तों की नज़रों में। शेष जो रह जाता है वह इन पूजोत्सव के बाद तीव्रता से बढ़ा जल प्रदूषण,,,,।
      मुझे समझ नही आ रहा बालक द्वारा किए गए प्रश्न का क्या उत्तर दूँ। किसको समझाने की आवश्यकता है,,,? बालक को या भक्तों को,,,,???? समझ नही आता नही,,,यदि आप कोई उत्तर दे सकते हैं तो अवश्य दें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें