(चित्राभार इन्टरनेट)
भारत माँ की आत्मव्यथा
**********************
माँ को ही लपेट तिरंगें से,
सूली पर उसको टांग दिया।
देश के रखवालों ने देखो,
देश का जनाज़ा निकाल दिया।
आरोपों की बोली ऊँचीं,
निज कर्तव्यों को त्याग दिया।
आत्मव्यथा से कराह रही माँ ,
हमने विवेक-बुद्धि पर पर्दा तान दिया।
एक राष्ट्र की अस्मिता को कितने
हिस्सों मे बांट दिया,
साम्प्रदायिकता की पौध को हर
कोमल मन में गांत दिया।
महज तमाशाई बनकर जनता ने
हर अफवाहों को तूल दिया
अब तो समझों इनकी चालों कों
निजस्वार्थ को अपने पूर्ण दिया।
भारत माँ की आत्मव्यथा
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माँ को ही लपेट तिरंगें से,
सूली पर उसको टांग दिया।
देश के रखवालों ने देखो,
देश का जनाज़ा निकाल दिया।
आरोपों की बोली ऊँचीं,
निज कर्तव्यों को त्याग दिया।
आत्मव्यथा से कराह रही माँ ,
हमने विवेक-बुद्धि पर पर्दा तान दिया।
एक राष्ट्र की अस्मिता को कितने
हिस्सों मे बांट दिया,
साम्प्रदायिकता की पौध को हर
कोमल मन में गांत दिया।
महज तमाशाई बनकर जनता ने
हर अफवाहों को तूल दिया
अब तो समझों इनकी चालों कों
निजस्वार्थ को अपने पूर्ण दिया।
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