(चित्राभार इन्टरनेट)
यूँ ही लुकते छुपते
किसी क्षितिज पर
अस्त हो जाने की
हसरत,लाई है शाम
एक दीर्घ स्वास संग
खींच लूँ सब कोहराम
निर्मित हुआ यह कैसा
भंवर दिखाती है शाम।
पूछेगा ना कोई मेरे बाद
ज्ञात है मुझे मेरा अंजाम
फिर भी संचय की चाह
प्रश्न कैसा लाई है शाम।
बेवजह बहती है भावो
की नदि,तृष्णा है बेलगाम
ढूबते सूरज संग गहराती
उदासी क्यों लाई है शाम
यूँ ही लुकते छुपते
किसी क्षितिज पर
अस्त हो जाने की
हसरत,लाई है शाम
एक दीर्घ स्वास संग
खींच लूँ सब कोहराम
निर्मित हुआ यह कैसा
भंवर दिखाती है शाम।
पूछेगा ना कोई मेरे बाद
ज्ञात है मुझे मेरा अंजाम
फिर भी संचय की चाह
प्रश्न कैसा लाई है शाम।
बेवजह बहती है भावो
की नदि,तृष्णा है बेलगाम
ढूबते सूरज संग गहराती
उदासी क्यों लाई है शाम
नाहक की सोच है यह
जवाब देंहटाएंऐसे तो विचार हैं आम
बहुत सिंदूरी होती है
निखरती रोज है यह शाम
अलहदा कर के ना रखिए
ना रखिए मन में अंजाम
निहारता सूरज उतरता जा रहा
निखरती आ रही फिर शाम।
आपकी सुंदर रचना ने मुझे लिखने की प्रेरणा फि।